महारविवार

रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित है। रविवार के दिन व्रत रखना और सूर्य देव को जल अर्पित करना बहुत खुश माना जाता है। इस दिन सूर्य देव की उपासना करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। परन्तु यदि यह पूजा विधि पूर्वक न किया जाए तो दुष्परिणाम भी देखने को मिलते है। यह व्रत पुरुषों और महिलाओं दोनो द्वारा किया जाता है। जिससे जीवन मे सुख-समृद्धि, धन-सम्पत्ति मे वृद्धि होती है तथा शत्रुओं का भय भी खत्म होता है। समाज मे मान-पद प्रतिष्ठा बढ़ता है। साथ ही कुष्ठ रोग से भी मुक्ति मिलती है और आपका स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

भाद्रपद के शुक्ल पक्ष

इस दिन भक्त प्रातः काल स्नान-ध्यान करके व्रत का अनुष्ठान करते है। भगवान सूर्य देव को जल अर्पण करके हवन-पूजन का पारम्परिक कार्य किया जाता है। तथा मंदिरो में दर्शन के लिए सुबह से शुरु हुआ सिलसिला देर रात तक चलता हैै। ग्रह एवं दोषो के निवारण के लिए भी भीड़ लगी रहती है। अपनी किरणों से पूरे संसार को उजाला देने वाले तथा शक्ति एवं ऊर्जा का संचार करने वाले भगवान सूर्यदेव की पूजा का बहुत बड़ा महत्व है।

रविवार व्रत का महत्व

रविवार का व्रत करने से अनेक शुभ फलों की प्राप्ति होती है। स्वास्थ्य सम्बन्धित परेशानियाँ दूर होती है। लम्बी आयु का वरदान मिलता है एवं समाज मे यश फैलता है। विद्या के क्षेत्र मे भी उन्नति मिलती है। जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से लगातार 30 या 12 रविवार का व्रत करता है उसको सभी रोगों से मुक्ति मिलती है। तथा नौकरी व्यवसाय मे आ रही परेशानियाँ दूर होती है।

रविवार व्रत की पौराणिक कथा

प्राचीन समय की बात है एक गाँव मे एक बुढ़िया रहती थी। वह सूर्यदेव को अपना इष्टदेव मानती थी। प्रत्येक रविवार के दिन प्रातःकाल उठकर घर की साफ सफाई करने के बाद सूर्यदेव के लिए भोग बनाती थी। सूर्यदेव को भोग लगाने के बाद ही वह स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। बुढ़िया यह कई वर्षों से कर रही थी। यह सब देखकर भगवान सूर्य भी उससे बहुत प्रसन्न थें। फलस्वरुप भगवान की कृपा दृष्टि से उसके घर मे किसी वस्तु की कमी नही थी और बुढ़िया चिंता मुक्त रहती थी। बुढ़िया अपने घर को शुद्ध करने के लिए गाय के गोबर से अपना घर लिपती थी। लेकिन बुढ़िया ने कोई गाय नही पाल रखी थी। जिसके कारण वह एक महिला के घर से प्रतिदिन गाय का गोबर लाती थी।
उस महिला ने बुढ़िया को सुखी होते देखा तो उसके मन मे जलन की भावना जाग उठी जिसके कारण उसने अपने गाय को आंगन मे न बाँधकर घर के भीतर बांध दिया। जिसके कारण बुढ़िया को गाय का गोबर नही मिला और उसने इस रविवार न घर को शुद्ध किया और न ही भगवान को भोग लगाई तथा स्वयं भी दिन भर भूखी-प्यासी रही। वह भूखी प्यासी ही सो गई। परन्तु जब प्रातःकाल उसकी आँखे खुली तो वह अपने आंगन मे सुन्दर गाय को देखकर आश्चर्यचकित रह गई। गाय को आंगन मे बांधकर उसने गाय की सेवा की और चारा भी खिलाया। जब इस गाय को महिला ने देखा तो वह और भी जल उठी। उसी समय गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही महिला की आखे दंग रह गई।
महिला ने देखा और सोचा अभी तो गाय के पास कोई नही है और बुढ़िया भी कही दिखाई नही दे रही है तो उसने सोने का गोबर उठा लिया और अपने गाये के साधारण गोबर को वहाँ रख आई। अब यह कार्य महिला प्रतिदिन करने लिए। सूर्योदय होने से पहले गाय सोने का गोबर देती और महिला उसे अपने गाय के गोबर से बदल देती। जिससे महिला कुछ ही दिनों बहुत अमीर हो गई। जिसके कारण बहुत दिनो तक बुढ़िया को इसके बारे मे पता नही चला।
सूर्यदेव को जब सारी घटनाओ के बारे मे पता चला तो उन्होने तेज आंधी चलाई आंधी के प्रकोप से बुढ़िया ने गाय को आंगन मे न बांधकर घर के भीतर बांध दिया। जब सुबह बुढ़िया उठी तो वह सोने का गोबर देखकर आश्चर्यचकित हो गई। उस दिन से बुढ़िया प्रतिदिन गाय को घर के भीतर बांधने लगी। सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिनो मे बहुत अमीर हो गई। उस बुढ़िया को अमीर बनता देख महिला जल भुन गई। तब उसने अपने पति को बहुत समझा बुझाकर नगर के राजा के पास भेज दिया। राजा ने यह सब सुनकर सैनिको को आदेश किया कि वह उस गाय को महल लाये। बुढ़िया भी राजा का विरोध न कर पाई और वह गाय सैनिको को सौप दी। राजा ने जब सोने का गोबर देखा तो वह भी दंग रह गया और उसके खुशी का ठिकाना नही रहा। परन्तु अपने आराध्य सूर्यदेव से प्रातः गाय को खोकर बुढ़िया अत्यन्त दुखी होकर भोजन व जल का त्याग कर दिया और प्रार्थना की वह गाय वापस मिल जाए।
उसी रात मे सूर्यदेव राजा के सपने मे आकर बोलते है कि हे राजन मैने यह गाय बुढ़िया के भक्ति भाव से प्रसन्न होकर दिया है। अतः तुम इसे बुढ़िया को पुनः सौप दो वरना मै तुम्हारे जीवन मे अनेक परेशानियाँ उत्पन्न कर दूँगा। जब राजा की आँख प्रातःकाल खुली तो उसने देखा सारा महल गोबर से भरा हुआ है तब राजा समझ जाता है उसने यह गाय लाकर बहुत बड़ी भूल कर दी है। उसने तुरन्त बुढ़िया को बुलवाया और उससे क्षमा याचना की एवं गाय उसे पुनः सौप दिया। राजा ने महिला और उसके पति को भी दण्डित किया। और पूरे राज्य मे रविवार का व्रत करने का घोषणा किया। जिससे पूरा राज्य खुशियों से खिल-खिला उठा।

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रविवार व्रत का भोजन

जो भक्त रविवार का व्रत रखते है उन्हे उस दिन नमक के सेवन बिल्कुल नही करना चाहिए। दिन मे केवल एक बार ही भोजन करना चाहिए। भोजन मे गेहू की रोटी, दलिया, गुड़ का भोजन करें परन्तु पहले सूर्यदेव को भोग लगायें। यदि केवल फलाहार का व्रत करे तो यह सबसे सर्वोत्तम व्रत होता है। भोजन करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखें की सूर्यास्त के बाद भोजन न करें।

रविवार व्रत का फल

रविवार का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। तथा स्त्रियों का बाझपन भी दूर होता है। इससे पापों से मुक्ति मिलती है। मनुष्य को धन यश मान सम्मान तथा आरोग्य प्राप्त होता है।

रविवार की पूजन विधि

☸ इस दिन प्रातः काल उठकर नियमित कार्यों को करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
☸ उसके पश्चात घर के किसी पवित्र स्थान पर भगवान सूर्यदेव की सोने की मूर्ति या फोटो स्थापित करें।
☸ इसके बाद भगवान सूर्यदेव को फूल अर्पित करके पूजन करें।
☸ उसके पश्चात रविवार की कथा सुनें तथा आरती करें।
☸ उसके बाद भगवान सूर्यदेव का स्मरण करते हुए ओम ह्मं हृी हृौं सः सूर्याय नमः मंत्र का 3,5 या 12 माला जाप करें।
☸ जप करने के बाद शुद्ध जल, अक्षत, लाल पुष्प, दुर्वा, लाल चंदन से सूर्यदेव को अघ्र्य दें।

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