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महेश नवमी ऐसे करें शिव जी की आराधना, ज्येष्ठ में शिव पूजा का महत्व

हिन्दू पंचाग के अनुसार प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को ‘‘महेश नवमी’’ का पर्व मनाया जाता है। यह नवमी माहेश्वरी समाज के लिए बहुत महत्व रखती है। इस दिन माता पार्वती एवं शिवजी की आराधना करते हैं। महेश नवमी के नाम से माहेश्वरी वशोंत्पत्ति दिन के रुप में यह पर्व माहेश्वरी समाज बहुत धूमधाम से मनाता है। ज्येष्ठ महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं। इस साल महेश नवमी 29 मई 2023 दिन सोमवार को मनाई जायेगी।

ज्येष्ठ में शिव पूजा का महत्व

ज्येष्ठ माह में भगवान शिव को जल चढ़ाने का विशेष महत्व ग्रंथों में भी बताया गया है। स्कन्द और शिव पुराण के अनुसार इस माह में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से महापुण्य मिलता है। सामान्य जल के साथ-साथ दूध भी चढ़ाया जा सकता है।

पौराणिक कथा

कई धार्मिक एवं पौराणिक कथाओं के अनुसार युधिष्ठिर संवत ज्येष्ठ माह शुक्ल नवमी के दिन भगवान शिव और आदि शक्ति माता ने ऋषियों के श्राप के कारण पत्थर बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को श्राप से मुक्त किया था और उनको पुनर्जीवन का आशीर्वाद देते हुए कहा कि आज से तुम्हारे वंश पर हमारी कृपा दृष्टि एवं छाप रहेगी, तुम्हारा वंश ‘‘माहेश्वरी’’ के नाम से जाना जायेगा।

भगवान महेश एवं माता पार्वती की कृपा से 72 क्षत्रिय उमरावों को पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई। यही कारण है कि माता पार्वती एवं शिव जी को माहेश्वरी समाज का संस्थापक मानकर यह नवमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। इस उत्सव की शुरुआत पहले से ही आरम्भ कर दी जाती है। इस दिन धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम किये जाते हैं तथा शोभा यात्रा निकाली जाती है। भगवान शिव जी की महाआरती भी की जाती है। यह नवमी महादेव एवं माता पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति को प्रकट करता है।

देवों के देव महादेव महेश स्वरुप में पृथ्वी से भी ऊपर कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड, त्रिशूल, डमरु के साथ लिंग रुप में शोभायमान होते हैं। भगवान शिव के इस बोध प्रतीक के प्रत्येक प्रतीक का महत्व है। धरती गोल परिधि में है लेकिन भगवान शिव ऊपर है अर्थात पृथ्वी की परिधि भी उन्हें नहीं बांध सकती हैं। वह एक लिंग के रुप में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सबसे ऊपर हैं।

ओम का महत्व

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ओम ईश्वरीय श्रद्धा का प्रतीक है। हमारा समाज आस्तिक एवं प्रभु पर विश्वास एवं श्रद्धा रखने वाला हैं। पूरे ब्रह्माण्ड का द्योतक सभी मंगल मंत्रो का मूलाधार परमात्मा के अनेक रुपों का समावेश किये सगुण एवं निर्गुणाकार एकाक्षर ब्रह्मा आदि से सारे ग्रंथ भरे पड़े हैं।

शिव जी के त्रिशूल का महत्व

भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल विभिन्न प्रकार के कष्टों को नष्ट करने वाला एवं दृष्ट प्रवृत्ति का दमन कर सर्वत्र शांति की स्थापना करता है।

कमल का महत्व

कमल जिसमें नौ पंखुडिया है वह नौ दुर्गाओं का प्रतीक है। नवमी ही हमारा उत्पत्ति दिवस है। कमल एक ऐसा पुष्प है जो भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से अंकुरित किया और इससे ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई इसलिए माता लक्ष्मी को कमल का पुष्प अत्यन्त प्रिय है और मां कमल पर विराजमान हैं  एवं अपने दोनों हाथों में कमल का पुष्प लिया है।

डमरु का महत्व

भगवान शिव जी का डमरु हमें यह शिक्षा देता है कि उठो जागो और जनमानस को जागृत कर समाज एवं देश की समस्याओं को दूर करों व परिवर्तन की कोशिश कर समाज में धर्म सच्चाई का डंका बजाओं।

त्रिपुंड का महत्व

त्रिपुंड तीन टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं होती हैं जो कि पूरे ब्राह्मण को समाए हुए हैं। एक खड़ी रेखा अर्थात भगवान शिव का तीसरा नेत्र जो दुष्टों एवं राक्षसों के संघार के लिए खुलता है। यह त्रिपुंड भस्म से ही लगाया जाता है, जो देवों के देव महादेव की वैराग्य वृत्ति के साथ ही त्यागवृत्ति की ओर इशारा करता है तथा हमें आदेश देता कि हम सभी अपने जीवन में सदैव त्याग एवं वैराग्य की भावना को समाहित कर समाज एवं देश का उत्थान करें।

बेलपत्र का महत्व

भगवान शिव को चढ़ाया जाने वाला पत्र हमारे स्वास्थ्य का प्रतीक है। भगवान महेश के चरणों में अर्पित बेलपत्र परमप्रिय है। त्याग की महिमा से तो हिन्दूओं के ही नहीं संसार के सभी धर्मों के शास्त्र है हमारे पूर्वज सादगी पूर्ण जीवन अपनाकर बची पूंजी समाज उपयोग कार्य में लगाकर स्वयं को धन्य मानते हैं।

ऐसे करें शिव जी की आराधना

☸ आज के दिन प्रातःकाल उठें एवं स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर स्वयं को शुद्ध कर लें।
☸ अब उत्तर दिशा की ओर मुख करके शिव जी की पूजा करें एवं व्रत का संकल्प लें।
☸ उसके बाद गंध, फूल, बेलपत्र से भगवान शिव एवं माता पार्वती की आराधना करें।
☸ दूध एवं गंगाजल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें।
☸ शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, फूल और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं जिससे आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।

 

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