नवरात्रि के सभी दिन बहुत महत्वपूर्ण होते हैं तथा आज नवरात्रि का दूसरा दिन है। आज के दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं तथा माता का प्रिय पुष्प गुलदाउदी है। नवरात्रि के दूसरे दिन हरे, लाल, सफेद एवं पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। माता का यह रुप देवी पार्वती का अविवाहित रुप माना जाता है। ब्रह्मचारिणी एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है ब्रह्म, पूर्ण वास्तविकता व सर्वोच्च चेतना तथा चारिणी का अर्थ है चार्य का स्त्री संस्करण अर्थात व्यवहार या आचरण करने वाली।
माता ने शिवजी को प्राप्त करने के लिए हजारो वर्षों तक घोर तपस्या किया था जिसके परिणामस्वरुप उन्हें भगवान शिव की पत्नी बनने का अवसर प्राप्त हुआ। यही कारण है कि माता को शक्ति एवं सच्चे प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
नवरात्रि का दूसरा दिन 16 अक्टूबर 2023 को सोमवार के दिन मनाया जायेगा।
आज के दिन उगते सूर्यदेव को जल दें, धन-सम्पत्ति की स्थिति सदैव मजबूत रहेगी। शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और शमीपत्र अर्पित करें, शिव जी की कृपा बनी रहेगी।
ब्रह्मचारिणी माता का प्रिय मंत्र
दधाना कर पदमाभ्यामक्षमालाकमण्डलु
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिणी रुपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
दशाना कर पदाभ्याम अक्षमाला कमण्डलू
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिणी
ओम देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः
ब्रह्मचारिणी माता का स्त्रोत पाठ
तपश्रारिणी त्वहि तापत्रय निवारणीम्
ब्रह्मरुपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्
शकड़र प्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्
क्यों पड़ा माता का नाम ब्रह्मचारिणी
कई मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि जब माता पार्वती को महादेव के प्रति अपने दिव्य प्रेम के बारे में पता चला तो उन्हें ऋषि नारद मुनि ने लम्बे युगों की कठोर तपस्या के रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों कोे करने का सलाह दिया। माता ने तपस्या के दौरान भीषण शीत, सूर्य की प्रचण्ड लपटें और वर्षा की गर्जना जैसे प्राकृतिक पीड़ाओं को भी सहा था। उन्होंने जीवित रहने के लिए एकमात्र बेलपत्र का सेवन किया था। बिना कुछ खाये-पीये माता ने अपने कई वर्ष महादेव को समर्पित कर दियें। इसी महान तपस्या के कारण माता का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।
इसलिए नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता की पूजा करते हैं जिससे नौ दिनों तक बिना अन्न जल किए उपवास रहने की शक्ति प्राप्त हो सके तथा मंत्रों का जाप भी करते है जिससे माता की अपार कृपा प्राप्त होती है।
ब्रह्मचारिणी माता की पूजा के फल
ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और इन्हीं नौ ग्रहों मे से मंगल और बुध ग्रह पर माता का शासन माना जाता है। मंगल कुण्डली में पहले तथा आठवें भाव का मालिक तथा बुध तीसरे एवं छठवें भाव का मालिक होता है। अतः इनसे होनी वाली परेशानियों को माता दूर करती हैं साथ ही माता अपने भक्तों एवं साधकों को विपरीत परिस्थितियों में लड़ने की क्षमता प्रदान करती है।
आपको नकारात्मक ऊर्जा का भी भय नही होता है। आपको ज्ञान, पराक्रम एवं अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से मानसिक परेशानियां दूर होती हैं। इंटरव्यू की तैयारी कर रहें जातकों को सफलता प्राप्ति के लिए ब्रह्मचारिणी माता की पूजा करनी चाहिए। जो छात्र चिकित्सक क्षेत्र से जुड़े हैं उन्हें विशेष रुप से माता की आराधना करनी चाहिए।
नवरात्रि के दौरान रखें इन बातों का ध्यानः-
☸ विष्णु पुराण के अनुसार, नवरात्रि व्रत के दौरान दिन में सोना नही चाहिए।
☸ व्रत के दौरान अगर आप फल खा रहे हैं तो उसे एक बार में ही पूरा खत्म कर लें, कई बार में नही।
☸ व्रत के दौरान , नौ दिनों तक अनाज और नमक का सेवन नही करना चाहिए।
☸ खाने में कुट्टू का आटा, समा के चावल, सिंघाडे का आटा, साबूदाना, सेंधा नमक, फल, आलू, मेवे, मूंगफली शामिल हो सकते हैं।
☸ नवरात्र के दौरान व्रत रखने वाले लोगों को संभव हो तो बेल्ट, चप्पल-जूते, बैग आदि चमड़े की चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
ब्रह्मचारिणी माता की पूजा विधि
☸ आज ब्रह्म में उठकर स्नान आदि कर लें, उसके बाद एक चौकी पर गंगाजल छिड़क कर ब्रह्मचारिणी माता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
☸ उसके बाद माता को फूल, फल एवं वस्त्र अर्पित करें तथा विशेष रुप सिंदूर एवं लाल पुष्प अवश्य चढ़ाएं।
☸ नवरात्रि के दूसरे दिन माता को केसर का खीर, हलवा या चीनी का भोग लगाएं, इससे माता शीघ्र ही प्रसन्न होंगी और आपको सभी सुख की प्राप्ति होगी।
माता का पसंदीदा भोग
माता ब्रह्मचारिणी को दूध से बनी मिठाई अत्यन्त प्रिय है यदि संभव हो तो माता को दुग्ध उत्पादों का भोग लगाएं। इसके अलावा सिंघाड़े की खीर, कच्चे केले की बर्फी, मिश्री, शक्कर और पंचामृत का भोग भी लगा सकते हैं।