नवरात्रि में नित्य दुर्गा चालीसा पाठ सें पायें अपार सफलता

नवरात्रि के पहले ही दिन से पूरे देश में मां दुर्गा की पूजा-उपासना शुरू हो जाती है। भक्तगण अपने घरों और मंदिरों में देवी की आराधना करते हैं। उपासना करते समय, हवन, आरती, चालीसा और दुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भक्त नवरात्रि के नौ दिनों तक दुर्गा चालीसा का पाठ करता है, उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ।

निरंकार है ज्योति तुम्हारी तिहुँ लोक फैली उजियारी।।

शशी ललाट मुख महा विशाला नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।

रुप मातु को अधिक सुहावे दरश करत जन अति सुख पावे ।।

तुम संसार शक्ति लय कीना पालन हेतु अन्न धन धन दीना ।

अन्न्पूर्णा हुई जग पाला तुम ही आदि सुन्दरी बाला ।।

प्रलयकाल सब नाशन हारी तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।

शिव योगी तुम्हारे गुण गावे ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावे ।।

रुप सरस्वती का तुम धारा दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ।

धरा रुप नरसिंह को अम्बा प्रकट भई फ़ाड़ कर खम्बा ।।

रक्षा कर प्रहलाद बचायो हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।

लक्ष्मी रुप धरो जग माहीं श्री नारायण अंग समाहीं ।।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा. दया सिन्धु दीजै मन आसा ।

हिंगलाज में तुम्ही भवानी महिमा अमित न जात बखानी ।।

मातंगी धूमावती माता भूवनेश्वरी बगला सुखदाता ।

श्री भैरव तारा जग तारणि छिन्नभाल भव दुःख निवारिणी ।।

केहरि वाहन सोहे भवानी लांगुर बीर चलत अगवानी ।

कर में खप्पर खड़ग विराजै जाको देख काल डर भाजै ।।

सोहे अस्त्र और त्रिशूला जाते उठत शत्रु हिय शूला ।

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नगर कोटि में तुम्ही विराजत तिहुँ लोक में डंका बाजत ।।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे रक्त बीज शंखन संहारे ।

महिशासुर नृप अति अभिमानी जेही अध भार मही अकुलानी ।।

रुप कराल कालिका धारा सेन सहित तुम तिहि संहारा ।

परी गाढ़ संतन पर जब जब भई सहाय मातु तुम तब तब ।।

अमर पुरी अरु बासव लोका तव महिमा सब कहे अशोका ।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी तुम्हें सदा पूजे नर नारी ।।

प्रेम भक्ति से जो यश गावै दुःख दरिद्र निकट नहीं आवे ।

जोगी सुर नर कहत पुकार योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ।।

शंकर आचारज तप कीनो काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ।।

शक्ति रुप को मरम न पायो शक्ति गई तब मन पछतायो ।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी जय जय जय जगदम्ब भवानी ।।

 भई प्रसन्न आदि जगदम्बा दई शक्ति नहिं कीन बिलम्बा ।

मोको मात कश्ट अति घेरो तुम बिन कौन हरे ‘दुःख मेरो ।।

आशा तृष्णा निपट सतावे रिपु मूरख मोहि अति डर पावै ।

शत्रु नाश कीजै महारानी सुमिरौं एकचित तुम्हे भवानी ।।

करो कृपा हे मातु दयाला ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निराला ।

जब लगि जियौ दया फल पाऊं तुम्हरे यश में सदा सुनाऊं ।।

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै सब सुख भोग परम पद पावै ।

देवीदास शरण निज जानी करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।