नवरात्रि के तीसरे दिन होती है माता चंद्रघंटा की पूजा, जाने पूजा विधि वस्त्र के रंग भोग और स्तुति मंत्र

नवरात्रि हिन्दू धर्म में एक पावन पर्व है जो बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि में माता रानी के नौ स्वरुपों की पूजा करते हैं। आज माता के तीसरे स्वरुप चंद्रघंटा की पूजा आराधना की जायेगी। चंद्रघंटा माता बाघ पर सवारी करती हैं। ऐसा माना जाता है कि माता के इस आसन से सभी राक्षस गण भयभीत हो जाते हैं। माता के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होता है इसी कारण वश उन्हें चंद्रघंटा माता की संज्ञा दी गई है। मां को शंखपुष्पी का फूल अत्यन्त प्रिय है। माता जगदम्बा के इस स्वरुप की साधना करने से वीरता, निर्भयता एवं सौम्यता का वरदान प्राप्त होता है। चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन क्यों है इतना महत्वपूर्ण आइये जानते हैं दिल्ली के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी के द्वारा-

नवरात्रि का तीसरा दिन 17 अक्टूबर 2023 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना की जायेगी।

कैसे करें माता की आराधना

☸ नवरात्रि के दिन प्रातः काल उठें एवं स्नान आदि कर स्वयं को शुद्ध कर लें।

☸ उसके पश्चात पूजा के लिए स्वच्छ जल तथा पंचामृत तैयार करें।

☸ अब माता का गंगाजल से अभिषेक करें।

☸ उसके बाद मां को कुमकुम, सिंदूर, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप इत्यादि अर्पित करें।

☸ इन वस्तुओं को अर्पित करने के पश्चात माता को केसर एवं दूध से बनी मिठाई या खीर का भोग लगाएं।

☸ पुष्प में माता को सफेद कमल, लाल गुलाब की माला और शंखपुष्पी का फूल अर्पित करें।

☸ अब दुर्गा सप्तशती का पाठ करें तथा चंद्रघंटा माता के मंत्रों का जाप करें।

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☸ पूजा समापन के दौरान माता की आरती अवश्य गाएं और घंटा बजाएं।

☸ ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से सभी नकारात्मक शक्तियाँ दूर हो जाती हैं।

मंत्रः-  ओम देवी चन्द्रघण्टायै नमः।।

माता का प्रार्थना मंत्र

पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

स्त्रोत

आपदुध्दारिणी आधा शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादी सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्।।
चन्द्रमुखी इष्टदात्री इष्टम् मंत्र स्वरुपिणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्।।
नानारुपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्।।

माता चंद्रघंटा की पूजा का महत्व

चंद्रघंटा माता का संबंध शुक्र ग्रह से माना जाता है। यदि आपकी कुण्डली में शुक्र ग्रह से जुड़ा कोई दोष है तो चंद्रघंटा माता की आराधना करने से वह दूर हो जायेगा। पारिवारिक सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए मां की आराधना उत्तम माध्यम है। चंद्रघंटा माता संतान की रक्षा करती हैं तथा उन्हें निडर बनाती है। विवाह में आ रही किसी भी परेशानी के लिए माता की आराधना श्रेष्ठ उपाय है।

नवरात्रि के तीसरे दिन होती है माता चंद्रघंटा की पूजा, जाने पूजा विधि वस्त्र के रंग भोग और स्तुति मंत्र

कैसे बनी माँ चंद्रघंटा पूर्ण कथा

हिन्दू धर्म के पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में देवताओं और असुरों के बीच महायुद्ध हुआ और यह युद्ध लम्बे समय तक चला, जिसमें असुरों का स्वामी महिषासुर तथा देवताओं के स्वामी इन्द्र देव थें। इस युद्ध में महिषासुर ने देवताओं को पराजित कर स्वर्गलोक पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इसे देखकर सभी देवतागण अत्यन्त दुखी एवं परेशान हो गये और अपनी इस परेशानी का हल निकालने के लिए वे सभी त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गये। देवताओं ने बताया कि महिषासुर दानव ने इंद्र, चन्द्र, सूर्य, वायु और अन्यत देवताओं के भी सभी अधिकार छीन लिए और उन्हें बंधक बना लिया है और स्वयं स्वर्ग लोक का राजा बन गया। देवताओं ने यह भी बताया कि महिषासुर के अत्याचारों के कारण देवता पृथ्वीलोक विश्राम कर रहे है क्योंकि स्वर्गलोक में उनके लिए तो कोई स्थान नही है।

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मां चंद्रघंटा की उत्पत्ति

देवताओं की बातें सुनकर त्रिदेवों को बहुत क्रोध आ गया। इस कारण तीनों देवताओं के मुख से एक ऊर्जा निकली और देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उसी ऊर्जा से जाकर मिल गई और दस दिशाओं में व्यापत हाने लगी, तत्पश्चात वहां एक दिव्य देवी का अवतरण हुआ। भगवान शिव जी ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने माता को चक्र प्रदान किया। ठीक इसी प्रकार अन्य देवी-देवताओं ने भी माता को अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये। इन्द्र देव ने माता को एक घण्टा दिया तथा सूर्य देव ने भी अपना तेज और तलवार प्रदान किया एवं सवारी के लिए शेर दिया तभी से उनका नाम मां चंद्रघंटा पड़ा।

महिषासुर का वध

मां चंद्रघंटा अवतार में महिषासुर का अंत करने के लिए तैयार हुई तथा माँ का यह विशालकाय स्वरुप को देखकर महिषासुर को यह ज्ञात हो गया है कि उसका काल अब निकट आ गया है। महिषासुर ने अपनी दानव सेना को माता पर हमला करने का आदेश दिया। इस युद्ध में अन्य दैत्य और दानवों ने भी अपना योगदान दिया परन्तु मां की शक्ति तो अपरम्पार है माता ने एक ही झटके में सभी दानवों का संहार कर दिया और अंत में महिषासुर का वध हुआ और अन्य देवताओं और राक्षसों का भी नाश हो गया इस प्रकार माता ने असुरों से देवताओं को मुक्ति दिलायी।

नवरात्रि विशेष पूजा

नवरात्रि के तीसरे दिन होती है माता चंद्रघंटा की पूजा, जाने पूजा विधि वस्त्र के रंग भोग और स्तुति मंत्र 1

नवरात्रि के तीसरे दिन एक तांबे का सिक्का या तांबे की कोई वस्तु, हलवा और सूखे मेवे आदि का माता को भोग लगाएं।

माता की विधिपूर्वक पूजा करें और पूजा के बाद तांबे के सिक्केे को अपने पास या अपने पर्स में रखें इसके अलावा इसमे छेद करके धागों मे पिरोले और गले में धारण करें फलस्वरुप पूरे जीवन माता की कृपा बनी रहेगी।

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यदि आप कर्ज से परेशान हैं तो नवरात्रि के तीसरे दिन माता के निम्न मंत्र का 51 बार जाप करें। इससे आपको जल्द ही कर्जों से मुक्ति मिल जायेगी।

मंत्रः- दारिद्रय दुःख भय हरिणी का त्वदन्या
         सर्वोपकार करणाय सदार्द चित्ता

नवरात्रि के तीसरे दिन केले के पेड़ की जड़ में रोली, चावल, फूल और जल चढ़ाएं तथा नवमी के दिन केले के पेड़ में थोड़ी सी मिट्टी रख दें। इसे आप अपने तिजोरी में रखें जिससे आर्थिक स्थिति सदैव मजबूत होगी।

नौकरी में सफलता एवं आर्थिक समृद्धि के लिए चंद्रघंटा माता को कमल की माला अर्पित करें तथा कमल की पंखुड़ियों पर माखन मिश्री का भोग लगाकर 48 लौंग और 06 कपूर चढ़ाएं। आपकी इच्छा पूर्ण होंगी।

नवरात्रि विशेषः- आज के दिन लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है