एक वर्ष में 12 संक्रान्तियाँ पड़ती हैं जिनमें से मेष संक्रान्ति को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। मेष संक्रान्ति को वैशाख संक्रान्ति के रूप में भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में शामिल मेष संक्रान्ति के दिन दान और स्नान का विशेष महत्व होता है। मान्यता के अनुसार मेष संक्रान्ति के दिन संक्रान्ति से चार घंटे पहले और चार घंटे बाद तक पुण्यकाल लगा रहता है और इस लगे हुए पुण्यकाल के दौरान स्नान दान और पितरों का तर्पण करना अत्यन्त फलदायी माना जाता है। मेष संक्रान्ति को भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है।
Mesh Sankranti by Astrologer K.M. Sinha (मेष संक्रान्ति)-
संक्रान्ति किसे कहते हैं
संक्रान्ति के बारे में यदि बात करें तो सूर्य प्रत्येक महीने में अपना स्थान बदल कर प्रत्येक राशि में भ्रमण करते हैं अतः सूर्य के प्रत्येक महीने में एक राशि में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को ही संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म में संक्रान्ति का समय अत्यधिक महत्वपूर्ण और पुण्यकारी माना जाता है। भारत देश के कुछ राज्यों में जैसे आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, केरल, गुजरात, तेलांगना, तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र इन सभी राज्यों में मकर संक्रान्ति के पर्व को वर्ष का आरम्भ माना जाता है जबकि कुछ राज्यों जैसे बंगाल और असम के लोग इस संक्रान्ति को वर्ष की समाप्ति का दिन मानते हैं।
मेष संक्रान्ति का महत्व
मेष संक्रान्ति के महत्व की बात करें तो इस संक्रान्ति का संबंध कृषि, प्रकृति और ऋतु परिवर्तन से भी होता है। सूर्य देवता को प्रकृति के कारक के तौर पर भी माना जाता है इसलिए संक्रान्ति के दिन इनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है। शास्त्रों में सूर्यदेव को समस्त भौतिक और अभौतिक तत्वों की आत्मा माना गया है। ऋतुओं और जलवायु में परिवर्तन भी इन्हीं के कारण होता है इसके अलावा धरती जो अन्न पैदा करती है और जिससे जीव-जन्तुओं का भरण-पोषण होता है यह सब भी सूर्य देव के कारण ही सम्पन्न हो पाता है इसलिए हिन्दू धर्म में मेष संक्रान्ति के साथ-साथ सभी संक्रान्तियों का अत्यधिक महत्व होता है।
आइए जानें ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा द्वारा क्यों कहा जाता है मेष संक्रान्ति को सत्तू संक्रान्ति
मेष संक्रान्ति को कुछ जगह पर सत्तू संक्रान्ति तथा आम बोलचाल की भाषा में इसे सतुआ संक्रान्ति भी कहा जाता है दरअसल सत्तू संक्रान्ति के दिन घर में खाना न बनाने की परम्परा होती है। इस दिन घर के सभी सदस्य सत्तू का सेवन करते हैं। इस दिन सत्तू का दान किये जाने की भी परम्परा होती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य के मेष राशि में प्रवेश होने के साथ ही हिन्दू नव वर्ष में गर्मी के मौसम की शुरूआत मानी जाती है जिसके कारण लोग सत्तू का आहार लेते हैं जो शरीर को शीतलता देने के साथ-साथ सुपाच्य भी होता है इसके अलावा इस दिन पितरों के तर्पण के साथ भगवान श्री कृष्ण तथा सत्यनारायण भगवान जी की पूजा भी की जाती है साथ ही उन्हें सत्तू का भी भोग लगाया जाता है।
मेष संक्रान्ति पूजा विधि
☸ मेष संक्रान्ति के दिन प्रातः जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर पवित्र नदी में स्नान किया जाता है।
☸ यदि आपका किसी पवित्र नदी में नहाना संभव न हो तो घर में नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है।
☸ स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके ताँबे के एक लोटे में जल भरकर उसमें लाल चंदन, थोड़ा कुमकुम और लाल फूल या गुलाब की पत्तियाँ मिलायी जाती है।
☸ उसके बाद उसी लोटे से पूरब दिशा की ओर मुख करके दोनों हाथों से सूर्यदेव को 07 बार जल अर्पित किया जाता है।
☸ जल अर्पित करते समय सूर्यदेव के लिए गायत्री मंत्र का जाप अवश्य करें।
☸ मान्यता के अनुसार इस दिन सूर्यदेव की पूजा-अर्चना श्रद्धापूर्वक करने से जातक के सभी तरह के रोग हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं।
मेष संक्रान्ति के दिन किये गये दान-दक्षिणा का महत्व
☸ मेष संक्रान्ति के दिन किये गये दान-दक्षिणा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है।
☸ मेष संक्रान्ति के दिन जूते, चप्पल तथा कपड़े इत्यादि का दान-दक्षिणा करना भी अत्यन्त शुभ माना जाता है।
☸ इस दिन जरूरतमंदों को खाने-पीने की चीजें दान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।
☸ इस दिन गौ माता को हरी घास खिलाने से भी पुण्य फल मिलता है।
☸ इसके अलावा मेष संक्रान्ति के दिन सूर्य से सम्बन्धित चीजें जैसे ताँबे का बर्तन, लाल रंग के कपड़े, गेहूँ, लाल चंदन इत्यादि का दान-दक्षिणा अवश्य करना चाहिए।
☸ इस दिन सात्विक भोजन करना और भगवान शिव, भगवान विष्णु तथा माँ काली की पूजा करने का भी विशेष महत्व होता है।
मेष संक्रान्ति शुभ मुहूर्त
मेष संक्रान्ति का पर्व 13 अप्रैल 2024 को शनिवार के दिन मनाया जायेगा।
मेष संक्रान्ति पुण्य कालः- दोपहर 12ः22 मिनट से शाम 06ः46 मिनट तक।
मेष संक्रान्ति महापुण्य कालः- शाम 04ः38 मिनट से शाम 06ः46 मिनट तक।