सूर्य जब मीन राशि से मेष राशि में गोचर करते है तब खरमास भी समाप्त हो जाता है तथा शुभ कार्यों का प्रारम्भ हो जाता है। इस दौरान विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों का आरम्भ हो जाता है। मेष संक्रान्ति के दिन धर्म घट का दान, स्नान, तिल द्वारा पितरों का तर्पण किया जाता है। इस दिन मधुसूदन भगवान की पूजा की जाती है। इस संक्रान्ति में सूर्य देव की पूजा अर्चना करने के साथ गुड़ और सत्तू खाने का नियम होता है।
मेष संक्रान्ति की कथाः-
एक बार विष्णु नारद जी के साथ भ्रमण करते हुए धरती के लोगो को अपने-अपन कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते देखा। इससे उनका हृदय द्रवित हो उठा और वह वीणा बजाते हुए भगवान श्री हरि के शरण में गये उन्होंने भगवान से कहा की धरती पर रहने वाले लोगो की व्यथा हरने वाला कोई उपाय बताएं तब भगवान श्री हरि जी ने नारद जी से कहा की उसने विश्व कल्याण की भावना से बहुत ही सुन्दर प्रश्न किया है। तब भगवान ने कहा की वह उन्हें एक ऐसा व्रत को विधि-विधान से करने पर मनुष्य संसार के सारे सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इसके बाद काशीपुर नगर के एक गरीब ब्राह्मण को भीख मांगते हुए देखकर भगवान विष्णु जी खुद बुढ़े ब्राह्मण के रुप में उस गरीब ब्राह्मण के रुप में पास जाते है और उस ब्राह्मण को कहते है की सत्य नारायण भगवान मन वांछित फल देना चाहते है। वह ब्राह्मण उनका व्रत पूजन करे जिससे उसके सारे दुख दूर हो जाएगा। उन्होंने कहा इस व्रत का बहुत महत्व है। इस व्रत में भोजन न लेना ही उपवास नही है। इस व्रत में हृदय की धारण अच्छी होनी चाहिए तथा इसमें सत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा श्रद्धा पूर्वक करनी चाहिए।
साधू ने यही प्रसंग राजा उल्कामुख से विधि-विधान के साथ सुना दिया परन्तु उसका विश्वास अधूरा था। राज्य की श्रद्धा में कमी थी राजा ने कहा की वह संतान प्राप्ति के लिए सत्यव्रत पूजन करेगा समय मिलने पर उसके घर एक सुन्दर कन्या ने जन्म लिया। राजा की पत्नी ऊर्जावान बहुत श्रद्धालु थी उसने राजा को याद दिलाया तो उसने कहा की कन्या के विवाह के समय वह व्रत करेगा। समय आने पर कन्या का विवाह भी हो जाता है परन्तु उसने व्रत नही किया राजा अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला जाता है। चोरी के आरोप में राजा चंद्र केतु द्वारा राजा और उसके दामाद को जेल में डाल दिया जाता है। इसके पीछे राजा के घर में चोरी भी हो जाती है। उसकी पत्नी और पुत्री भी मांगने के लिए मजबूतर हो जाते है। एक दिन राजा की पुत्री किसी के घर सत्यनारायण की पूजा होते देखती है और वह घर आकर अपनी मां से इस व्रत के बारे में कहती है। अगले दिन श्रद्धा पूर्वक भगवान सत्य नारायण जी का व्रत और पूजन तथा कथा का आयोजन करती है। इस व्रत के दौरान उसने अपने पति और दामाद के घर आने की प्रार्थना करती है। लीलावती के व्रत से प्रसन्न होकर भगवान ने राजा को सपने में दोनो बंधुओं को धन दौलत देकर विदा किया , घर आकर राजा ने पूर्णिमा और संक्रान्ति को सत्यनारायण भगवान की पूजा का आयोजन करने लगा इससे उसको सांसारिक सुख एवं अंत में मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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मेष संक्रान्ति दान का महत्वः-
☸ इस संक्रान्ति पर गरीबों और जरुरतमंदों को खाने-पीने की वस्तु का दान किया जाता है।
☸ इस दिन वस्त्र और जूते, चप्पल का भी दान किया जाता है।
☸ मेष संक्रान्ति के दिन गाय को हरी घास खिलाने से पुण्य मिलता है।
☸ इस दिन सूर्य से सम्बन्धित चीजों जैसे तांबे का बर्तन, लाल कपड़े, गेहूं, गुड़, लाल चंदन आदि का दान किया जाता है।
☸ यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में सूरज नीचे के स्थान पर है तो उसे मेष संक्रान्ति के दिन दान, पुण्य करना चाहिए।
मेष संक्रान्ति का पूजा विधिः-
☸ इस दिन सूरज देवता को जल देने का विशेष महत्व माना जाता है।
☸ इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य क्रियाओं से परिपूर्ण होकर पवित्र नदी में स्नान किया जाता है।
☸ यदि घर में आस-पास कोई पवित्र नदी न हो तो घर में ही पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान किया जाता है।
☸ इस दिन स्नान के बाद लाल रंग के वस्त्र धारण किये जाते है।
☸ इसके बाद तांबे के लोटे में जल भरकर इसमें लाल चन्दन थोड़ा कुमकुम और लाल फूलों या गुलाब की पत्तियां मिलाई जाती है।
☸ यदि आप सूर्य देवता को घर पर ही जल दें रहे है तो जहां पर जल गिरेगा वहां किसी बर्तन या बाल्टी को रखा जाता है।
☸ ऐसा करने से जल जिस पात्र में एकत्रित होता उस जल को गमलें में डाल दिया जाता है।
☸ सूर्य देव को जल अर्पित करते समय गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है।
☸ यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में सूरज नीचे के स्थान करना चाहिए।