कुण्डली का आठवां भाव बताता है कि व्यक्ति की मृत्यु कहाँ और कैसे होगी?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य की जन्मकुण्डली
धरातल के दो सबसे बड़े सच हैं, पहला जीवन और दूसरा मृत्यु। भगवद गीता के अनुसार जिस प्राणी ने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। यह एक अटल सत्य है और आत्मा परमात्मा का अंश है।
किसी व्यक्ति की मृत्यु कब, कहाँ और कैसे होगी, यह उसके जन्म के साथ ही लिखा जा चुका है। व्यक्ति सबसे ज्यादा अपनी मृत्यु को लेकर भय में रहता है और पूरे जीवन उसे यही डर सताता रहता है कि मेरी मृत्यु कहाँ, कब, कैसे और किस परिस्थिति में होगी।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य की जन्मकुण्डली के अष्टम भाव को आयु या मृत्यु का भाव कहा जाता है। इस भाव में स्थित राशि, ग्रह, ग्रहों की दृष्टि और दृष्टि संबंध के आधार पर आसानी से ज्ञात किया जा सकता है कि व्यक्ति की मृत्यु कब कहाँ और कैसे हो सकती है।
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जानिए Astrologer K.M.Sinha Ji से आठवें घर में ग्रहों की स्थिति से मृत्यु के योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी जातक की कुण्डली के अष्टम भाव यानी आठवें घर में सूर्य देव विराजमान होते हैं तो ऐसे जातक की मृत्यु अग्नि से होती है। यह अग्नि किसी भी प्रकार की हो सकती है, जैसे पेट्रोल से आग लगना या फिर इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं से घर, वाहन में आग लग जाना आदि।
यदि आठवें घर में चन्द्रदेव विराजमान होते हैं तो जातक की मृत्यु का कारण समुद्र, नदी, झील, तालाब, कुआ हो सकता है। दरसल अष्टम भाव में चंद्र का प्रभाव होने से जातक की मृत्यु का कारण जल होता है।
यदि अष्टम भाव में मंगल हो तो अस्त्र-शस्त्र, चाकू, छुरी आदि के द्वारा मृत्यु हो सकती है। किसी आकस्मिक दुर्घटना में शरीर में अनेक कट लगने से मृत्यु हो सकती है।
यदि जातक की कुण्डली के अष्टम भाव में ग्रहों के राजकुमार बुध देव हों तो जातक की मृत्यु किसी भी प्रकार के ज्वर, संक्रमण, वायरस, बैक्टीरिया आदि के कारण हो सकती है।
वहीं, अष्टम भाव में बृहस्पति होने पर जातक की मृत्यु अजीर्ण, अपच, लीवर व पेट के रोगों से होती है, जैसे (फूड पांइजनिंग) खान पान में लापरवाही आदि।
यदि अष्टम भाव में शुक्र हो तो जातक की मृत्यु भुख से होती है अर्थात किसी रोग के कारण जातक कुछ भी नहीं खा पायें तो इस परिस्थिति में भी मृत्यु हो सकती है।
यदि किसी जातक की कुण्डली में शनि देव विराजित हो तो जातक की मृत्यु प्यास या पानी की कमी से होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शनि के प्रभाव से जातक को किडनी से संबंधित या जल की कमी से संबंधित रोगों हो जाते हैं।
यदि राहु -केतु समेत अनेक ग्रह अष्टम में हों तो जो ग्रह सबसे ज्यादा बली होता है, उसी के अनुसार मृत्यु समझना चाहिए।
जातक की जन्मकुण्डली के अष्टम भाव में चर राशियाँ मेष, कर्क, तुला या मकर हो तो जातक की मृत्यु घर से दूर या दूसरे शहर या विदेश में होती है। अष्टम भाव में स्थित राशियाँ वृषभ, सिंह, वृश्चिक या कुंभ हो तो जातक की मृत्यु अपने घर में होती है।
अष्टम भाव में द्विस्वभाव राशियाँ मिथुन, कन्या, धनु या मीन हो तो जातक की मृत्यु घर से बाहर मार्ग में होती है।
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8th House Analysis
कुंडली का आठवां भाव (8th House) वैदिक ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे आयु, मृत्यु, और रहस्यों का भाव भी कहा जाता है। आठवां भाव जीवन की अनिश्चितताओं, गुप्त बातों, गहरे रहस्यों, पुनर्जन्म, मृत्यु और गुप्त विद्या का प्रतिनिधित्व करता है। इसे मृत्यु का घर भी कहा जाता है, लेकिन इसका मतलब केवल भौतिक मृत्यु नहीं है, बल्कि यह जीवन में आने वाले परिवर्तनों और पुनर्जन्म का भी संकेत देता है।