25 वें राशिचक्र में 306.40 डिग्री से 320.00डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र शताभिषज नक्षत्र कहलाता है। नक्षत्रों की श्रेणी में शताभिषज नक्षत्र को 25 वाँ नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता वरुण है। जो वर्षा के देवता तथा आदित्यों में से एक है। इस नक्षत्र का स्वामी राहु होता है तथा राशि स्वामी शनि है। यदि इसके शब्दार्थ से देखा जाये तो शताभिषज नक्षत्र के फूल के आकार के सौ सितारे होते है। परन्तु खण्डात्मक में इस नक्षत्र का प्रतीक एक सितारा ही माना जाता है। अकाल की स्थिति पड़ने पर वर्षा के लिए वरुण देवता की पूजा की जाती है। माना जाता है कि अन्तरिक्ष मे घूमता है एवं अधिमुख आरोहित, रेडियोधार्मिता शक्तियों को मूलतत्वों नियंत्रित करता है। कुछ विद्वानों के अनुसार माने तो शताभिषज नक्षत्र वृत्ताकार माना जाता है तथा कुछ के अनुसार चमत्कारी कड़ा, मंडल के रुप मे देखा जाता है।
शताभिषज नक्षत्र में जन्में जातकों के सामान्य परिणामः-
शताभिषज नक्षत्र मे जन्में पुरुष जातकों के परिणाम
1. शारीरिक गठनः- शताभिषज नक्षत्र में जन्में जातक कोमल शरीर वाले होते है तथा इनका माथा चैड़ा होता है एवं इनकी आखे आकर्षक होती है। इस नक्षत्र के जातक के चेहरे पर एक तेज होता है तथा इनकी नाक कुछ ऊँची तथा पेट उभरा हुआ होता है। इसके अलावा इनकी स्मरण शक्ति भी काफी अच्छी होती है।
2. शताभिषज नक्षत्र मे जन्में पुरुष जातकों के स्वभाव एवं सामान्य घटनाः- इस नक्षत्र में जन्में पुरुष जातक ष्सत्यमेव जयतेष् मे अधिक विश्वास रखते है अर्थात यह जातक सत्य के लिए किसी भी मुश्किलों का सामना करने के लिए तैयार रहते है तथा प्राण भी देने मे संकोच नही करते है। अपने सिद्धान्तो के कारण इनका कई बार लोगो से टकराव भी हो जाता है। यह धार्मिक मान्यताओं को अपनाने पर बल देते भी है एवं निस्वार्थ भावना से सबकी सहायता करते है। यह इतने अड़ियल स्वभाव के होते है कि यदि एक बार कोई निर्णय ले ले तो पीछे नही हटते है। अपने जीवन के विपरीत परिस्थितियों से घबराते नही है बल्कि उनका सामना करने मे सक्षम होते है। जितनी शीघ्रता से क्रोधित होते है उतनी ही शीघ्रता से शांत भी हो जाते है। अपनी विद्वता का प्रदर्शन करने मे संकोच करते है एवं दिखावेबाजी से बहुत दूर रहते है।
3. शताभिषज नक्षत्र मे जन्मे पुरुष जातकों के रोजगार, शिक्षा व आय के साधनः- शताभिषज नक्षत्र के पुरुष जातकों को व्यवसाय के क्षेत्र में 34 वर्ष की आयु तक अधिक संघर्ष करना पड़ता है। इसके बाद उनके लिए प्रगति का योग बनता है। इस नक्षत्र के जातक ज्योतिष मनोवैज्ञानिक तथा चिकित्सा के क्षेत्र मे अधिक उपयुक्त माने जाते है। इस नक्षत्र के जातकों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा की प्राप्ति होती है तथा जातक एक अच्छा डाँक्टर एवं चिकित्सा के क्षेत्र मे उत्तम अनुसन्धान छात्र होता है।
4. शताभिषज नक्षत्र में जन्में पुरुष जातकों का पारिवारिक जीवनः- इस नक्षत्र के जातकों अपने मित्रो, रिश्तेदारो एवं परिवार जनों के द्वारा उत्पन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद यह बिना किसी शिकायत के सभी की मदद करते है। इनको अपने जीवन में भाइयों के कारण अधिक मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही पिता का सहयोग भी नही प्राप्त होता है। लेकिन माता का पूरा स्नेह मिलता है।
शताभिषज नक्षत्र मे जन्में पुरुष जातकों का स्वास्थ्यः- शताभिषज नक्षत्र में जन्में जातक सामान्यतः देखने मे पूर्ण स्वस्थ नजर आते है। परन्तु वास्तव मे ऐसा नही होता है। यह अपने शरीर पर छोटा सा दुष्प्रभाव सहन नही कर पाते है। स्वास्थ्य को लेकर मूत्र की बीमारियां, श्वास की तकलीफ एवं मधुमेह की सम्भावना रहती है। साथ ही यौन सम्बन्धित परेशानी से भी यह ग्रस्त रहते है। इस नक्षत्र मे जन्में जातको को ठन्डे मौसम के कारण होने वाले रोगो से सावधान रहना चाहिए।
शताभिषज नक्षत्र मे जन्मी स्त्री जातकों के सामान्य परिणाम
शताभिषज नक्षत्र में जन्मी स्त्रियों का शारीरिक गठनः- शताभिषज नक्षत्र मे जन्मी स्त्रियां पतली एवं लम्बेकद की होती है। देखने मे आकर्षक एवं साफ रंगी की होती है। स्वभाव से भी सुरुचिपूर्ण होती है। इनके होठा आकर्षक, गाल चैड़े एवं सिर उठा हुआ होता है।
शताभिषज नक्षत्र मे जन्मी स्त्रियों का स्वभाव तथा सामान्य घटनाः- शताभिषज नक्षत्र मे जन्मी स्त्रियाँ शान्त स्वभाव की होती है। परन्तु कभी-कभी अधिक उग्र एवं उत्साहित भी हो जाती है साथ ही यह धार्मिक क्षेत्र मे भी आस्था रखने वाली हेाती है तथा धार्मिक अनुष्ठान, व्रत उपवास भी करती है। इनकी स्मरण शक्ति अधिक अच्छी होती है। निस्वार्थ भावना से सबकी मदद करती है।
शताभिषज नक्षत्र मे जन्मी स्त्रियों की शिक्षा, रोजगार एवं आय के साधनः- शताभिषज नक्षत्र मे जन्मी स्त्रियाँ विज्ञान विषयों के अध्ययन मे अधिक रुचि रखती है। इस नक्षत्र की अधिकतर महिला डाक्टर के क्षेत्र मे उन्नति करती है।
शताभिषज नक्षत्र में जन्मी स्त्रियों का पारिवारिक जीवनः- शताभिषज नक्षत्र मे जन्मी स्त्रियों को अपने जीवन मे अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह स्त्रियाँ अपने पति का आदर करने वाली होती है। परन्तु इस नक्षत्र की स्त्रियों को कभी-कभी अपने पति से अलगाव की स्थिति बन जाती है तथा कुछ स्त्रियाँ विधवा भी हो जाती है तथा इनको एक से अधिक पुत्रियों का सुख प्राप्त होता है।
शताभिषज नक्षत्र में जन्मी स्त्रियों का स्वास्थ्यः- शताभिषज नक्षत्र मे जन्मी स्त्रियों को स्वास्थ्य सम्बन्धित परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गर्भाशय, मूत्राशय, उदरशूल तथा छाती के दर्द से पीड़ित रहती है।
शताभिषज नक्षत्र में ग्रहो की स्थिति से उत्पन्न परिणामः-
सूर्यः– शताभिषज नक्षत्र मे उपस्थित सूर्य पर यदि चन्द्रमा की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक स्त्रियों द्वारा अपने धन का व्यय करेगा जिसके कारण उसका जीवन दुखमय बीतेगा तथा यदि सूर्य पर मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक दूसरो के लड़ाई-झगड़े द्वारा धन अर्जन करेगा अर्थात जातक पेशे से वकील होगा। परन्तु कभी-कभी धन हानि के योग भी बनते है तथा जातक रोग ग्रसित होकर पागलपन की अवस्था तक पहुँच जाता है। यदि सूर्य पर बुध की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक पागलो की तरह व्यवहार करता है तथा हमेशा दूसरों के संतान के प्रति अधिक लगाव रखते है। इसके अलावा बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक समाज के लिए अच्छा कार्य करता है और बुद्धिमान एवं दयालु स्वभाव का होगा तथा जातक को सहायता भी प्राप्त होगा। यदि सूर्य पर शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो जातक को धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होगी तथा शनि की दृष्टि सूर्य पर पड़ने से जातक जिद्दी स्वभाव का होगा एवं अपने शत्रुओं का सामना करने मे भी सक्षम होगा। साथ ही प्रशासक के निकटवर्ती रहकर भी उनसे लाभ प्राप्त करेगा।
प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री)ः- सूर्य के प्रथम भाग मे जन्म लेने वाले जातकों की बात करें तो यदि इस भाग में सूर्य के साथ पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र मे शनि के उपस्थित होने पर जातक अपने परिवार पर किसी श्राप के कारण अपने बच्चों के विनाश का कारण बनेगा।
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री)ः- सूर्य के द्वितीय भाग मे सूर्य और चन्द्रमा के साथ उत्तरभाद्रपद नक्षत्र में लग्न पड़ने पर जातक अंधा होगा। यदि इस संयोजन पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक पूर्ण रुप से अंधा हो जाता है।
तृतीय भाग (313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री)ः- सूर्य के तृतीय भाग मे जन्म लेने वाले जातक यदि मृगशीर्ष नक्षत्र मे लग्न होने के साथ इस भाग में सूर्य, मंगल तथा शनि के उपस्थित होने पर जातक विदेश या परदेश मे किसी अग्निकांड़ या अन्य दुर्घटना के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
चतुर्थ भाग (316.20 डिग्री से 320.00 डिग्री)ः- सूर्य के चतुर्थ भाग में जन्मे जातक धूर्त, क्रूर, नीच तथा अशिक्षित होंगे तथा छोटा-मोटा दुकानदार अथवा छोटे स्तर की नौकरी मे होगा तथा बहुत गरीब होगा।
चन्द्रमाः-
शताभिषज नक्षत्र में उपस्थित चन्द्रमा पर यदि सूर्य की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक राजा के समान ही शक्तियां एवं अधिकार प्राप्त करेगा एवं सभी सुख सुविधाओ के साथ जीवन व्यतीत करेगा। यदि चन्द्रमा पर मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक विद्वान् होगा तथा बृहस्पति की दृष्टि पड़ने पर मंत्री भी हो सकता है। इसके अलावा बुध की दृष्टि पड़ रही हेा तो जातक दौलतमंद परन्तु शुक्र की दृष्टि पड़ने पर गरीब व्यक्ति होगा। यदि चन्द्रमा पर शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक जन्म से ही बड़े भू-भाग का स्वामी होगा।
प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री)ः- चन्द्रमा के प्रथम भाग में जन्मे जातक प्रायः चिकित्सक होंगे तथा यह जातक साहसी, मृदुभाषी तथा धार्मिक स्वभाव के होंगे परन्तु प्रायः दुखी रहते है। इस भाग के जन्मे जातकों को दो पत्नियाँ प्राप्ति का योग बनता है। इनके खाये बाजू पर कोई पहचान चिन्ह होगा। इनकी आयु का 5 वाँ, 12 वाँ और 28 वाँ वर्ष खतरे वाला होगा। इसके अलावा यह जातक देखने में जिद्दी एवं दुस्साहसी होंगे। इनके अन्र्तमान के बारे मे पता लगाना बहुत ही कठिन होगा। यह अपने माता के अलावा किसी से भी अधिक लगाव नही रहते है।
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री)ः- चन्द्रमा के द्वितीय भाग मे जन्मे जातक मान्यता प्राप्त ज्योतिष होते है। प्रथम भाग के जातकों की अपेक्षा इनको एक जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। जेा इनके प्रति सदैव समर्पित होती है। लेकिन इनको एक ही संतान की प्राप्ति होती है। इनको अपने जीवन के 28 वें वर्ष मे बेहद सावधानी बरतनी चाहिए। क्योकि इस अवधि मे वाहन दुर्घटना का भय बना रहता है। साथ ही बदमाशों द्वारा घायल होने की भी संभावना बनती है। इस भाग में जन्में जातकों को मिश्रित परिणाम देखने को मिलते है। यह अपने जीवन में कुछ समय तक शीर्ष स्थान पर तो कुछ समय तक पतन अवस्था मे रहते है। साथ ही अपने जुआरी स्वभाव के कारण दुखीपूर्ण जीवन व्यतीत करते है।
तृतीय भाग (313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री)ः- चन्द्रमा के तृतीय भाग में जन्म लेने वाले जातक पतले शरीर के साथ-साथ दुस्साहसी व्यक्ति होते है। यह अपने आप का बड़ा भाग मदिरापन तथा अन्य उपभोग पर व्यय करते है। प्रशासन एवं राजनीतिज्ञों द्वारा भी लाभ प्राप्त करते है। परन्तु इनकी आयु का 5 वाँ, बारहवाँ एवं 28 वाँ वर्ष घातक रहता है। लगातार प्रयासों के बावजूद भी यह अपनी परिस्थितियों से उभर नही पाते है। लेकिन यदि शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही तो यह कई बुरे परिणामों से बच जाते है और अच्छा धन सम्पत्ति अर्जित करते है।
चतुर्थ भाग (316.40 डिग्री से 320.00 डिग्री)ः- चन्द्रमा के चतुर्थ भाग मे जन्में जातकों की बात करे तो यदि उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र के प्रथम भाग मे सूर्य और मंगल की स्थिति के कारण बालक केवल एक सप्ताह तक ही जीवित रहेगा। लेकिन अकेले चन्द्रमा के स्थित रहने पर बालक दीर्घायु वाला होगा। इसके बावजूद भी पाँच वर्ष की आयु में आग का भय 12 वर्ष की आयु में पानी का भय तथा तीस वर्ष की आयु में दुर्घटना का भय बना रहता है।
मंगलः-
शताभिषज नक्षत्र में स्थित मंगल पर यदि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक को पत्नी, संतान एवं धन का सुख प्राप्त होगा तथा इसका स्वभाव मधुर नही होगा। यदि मंगल पर चन्द्रमा की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक माता के सुखों से वंचित होगा। एक से अधिक मित्रों की प्राप्ति होगी तथा जातक धनवान व्यक्ति होगा। इसके अलावा यदि बुध की दृष्टि हो तो जातक की वाणी मधुर होगी एवं यात्राओं से सम्बन्धित व्यवसाय करेगा एवं जातक का शरीर ऊर्जावान रहेगा। यदि मंगल पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक लम्बी आयु का स्वामी होगा तथा उत्तम गुणों से परिपूर्ण होगा। शासक का निवटवर्ती व्यक्ति होगा और अपने परिवार की देखभाल करने मे सदैव अग्रसर रहेगा। यदि मंगल पर शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक को यौन सुख की प्राप्ति होगी। परन्तु जातक भाग्यशाली होने के साथ साथ ही झगड़ालू स्वभाव का होगा। इसके अलावा यदि शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक प्रशासन द्वारा लाभ प्राप्त करेगा परन्तु स्त्रियों के साथ इनके सम्बन्ध अच्छे नही रहते है तथा जातक बुद्धिमान एवं प्रसिद्धि प्राप्त करेगा।
प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री)ः- मंगल के प्रथम भाग मे जन्मे जातक व्यक्तिगत रुप से अच्छे, सम्मानित एवं दयालु स्वभाव के होते है। जातक कुसंगति के कारण परेशान एवं दुखी रहेगा परन्तु परिवार के कार्यों के निर्वाह के लिए सदैव तत्पर होगा।
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री)ः- यदि चन्द्रमा के द्वितीय भाग मे लग्न के साथ माघ नक्षत्र मे शुक्र की उपस्थिति भी हो तो मंगल के इसी भाव से दोबारा गुजरने पर बालक की मृत्यु की संभावना रहेगी।
तृतीय भाग (313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री)ः- यदि मंगल के तृतीय भाग में लग्न के साथ माघ नक्षत्र में मंगल और शुक्र की उपस्थिति हो तो जातक के जन्म के पश्चात ही मौत की संभावना रहेगी।
चतुर्थ भागः- मंगल के चतुर्थ भाग मे जन्में जातक प्रायः व्यापार द्वारा लाभ प्राप्त करेंगे और बड़े भाई के सहयोग उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहेंगे परन्तु अस्थमा एवं फेफड़ों की बीमारी से ग्रसित होंगे।
बुधः-
शताभिषज नक्षत्र मे स्थित बुध पर यदि सूर्य की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक स्वभाव से जिद्दी एवं धूर्त होगा। साथ ही एक कुशल पहलवान भी होगा। यदि बुध पर मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक धनवान तो होगा परन्तु धन अर्जन के लिए वह कोई भी छोटा कार्य करेगा। ह्दय से भी यह जातक घमण्डी होते है। इसके बाद यदि बुध पर चन्द्रमा की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक जलीय उत्पादनों से धन अर्जन करेगा और सर्वश्रेष्ठ धन की प्राप्ति करेगा। लेकिन यह जातक स्वभाव से डरपोक होते है। यदि बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक गांव एवं कस्बे का प्रमुख व्यक्ति होगा तथा सरकारी विभाग व फैक्ट्री का अध्यक्ष होगा। इसके अलावा शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक को कुरुप संतान की प्राप्ति होगी तथा बुध पर यदि शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक गलत कार्य करेगा। जिसके कारण जातक सुखी जीवन नही व्यतीत करेगा और गरीब होगा।
प्रथम भाग (306.40डिग्री से 310.00 डिग्री)ः- बुध के प्रथम भाग मे जन्म लेने वाले जातकों को बात करे तो हस्त नक्षत्र मे लग्न पड़ने पर बालक का जीवन केवल 11 वर्ष की आयु का होगा। इस भाग मे जन्में जातक अपने भाई के साथ व्यवसाय शुरु करेगा। लेकिन 33 वर्ष की आयु के बाद उसके व्यवसाय में स्थिरता आयेगी।
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री)ः- बुध के द्वितीय भाग में जन्मे जातकों के भाई उनके शक्तिशाली शक्ति एवं धन का लाभ उठाते है। इनको अपने बड़े भाईयों का सहयोग मिलता है। यदि शुक्र के साथ युति हो तो पुरुष जातक का विवाह 25 वर्ष की आयु में एवं स्त्री जातकों का विवाह 22 वर्ष की आयु म ें होगा।
तृतीय भाग (313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री)ः- बुध के तृतीय भाग मे यदि बुध शनि के साथ युक्त हो तो जातक सरकार द्वारा उच्च पर की प्राप्ति करेगा। मंगल के युति हो तो जातक 31 वें वर्ष की आयु तक अत्यधिक कष्ट पायेगा। उसके पश्चत ही उसके जीवन मे स्थिरता आयेगी और वह एक समृद्धशाली व्यक्ति होगा। साथ ही पत्नी पक्ष से भी धनलाभ की प्राप्ति होगी। लेकिन वैवाहिक जीवन खुशमय नही होगा।
चतुर्थ भाग (316.40 डिग्री से 320. 00 डिग्री)ः- बुध के चतुर्थ भाग मे यदि सूर्य, चन्द्रमा एवं बृहस्पति भी संयुक्त हो जातक अमीर परिवार मे जन्म लेगा इसके बावजूद भी धनहीन होगा यदि बुध अकेला अथवा शनि या शुक्र के साथ हो तो धन अर्जन करेगा। इस भाग मे जन्में जातक को अपनी आयु के पाचवें, बारहवें एवं अठ्ठाइसवें वर्ष बेहद सावधान रहना चाहिए।
बृहस्पतिः-
शताभिषज नक्षत्र में स्थित बृहस्पति पर यदि सूर्य की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक देखने मे आकर्षक होगा तथा यह जातक एक योग्य वक्ता भी होते है। दूसरों की सहायता करने मे सदैव अग्रसर रहते है। यदि बृहस्पति पर चन्द्रमा की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक समाज मे उच्च पद नेता/मंत्री के पद पर कार्यरत होगा। यदि बृहस्पति पर मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक प्रशासन का विश्वासपात्र व्यक्ति होगा और उसी के द्वारा धन अर्जन करेगा। यदि बुध की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक शान्तिप्रिय व्यक्ति एवं धार्मिक स्वभाव का होगा और स्त्रियों द्वारा पसन्द भी किया जायेगा। यदि बृहस्पति पर शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक अत्यधिक विद्वान एवं सर्वगुणसम्पन्न होगा। साथ शासक का समीपवर्ती एवं मंत्री होगा बृहस्पति पर यदि शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक अपनी इच्छाओं की पूर्ति करेगा।
प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री)ः– शताभिषज नक्षत्र मे उपस्थित बृहस्पति के प्रथम भाग मे जन्मे जातकों और उनकी माता को प्रारम्भ मे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। जिसके कारण जातक के पिता इनकी देखभाल न करके इनके रिश्तेदार इनकी देखभाल करते है तथा जातक को सरकारी नौकरी की प्राप्ति होगी। इस भगा में जन्मे जातकों को 31 वें वर्ष की आयु मे बेहद सावधानी बरतनी चाहिए। क्योकि इस वर्ष मे इन्हें अग्नि एवं वाहन दुर्घटना का भय रहता है।
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री)ः- बृहस्पति के द्वितीय भाग मे यदि महा नक्षत्र में शनि के साथ इस भाग मे बृहस्पति भी उपस्थित हो तो जातक अपने से बड़ी आयु की महिला से विवाह करेगा। इसी प्रकार शुक्र रोहिणी नक्षत्र मे उपस्थित हो तो जातक अच्छे पद पर नियुक्त होगा। परन्तु 35 वर्ष की आयु तक वैवाहिक जीवन मे समस्या बनी रहेगी।
तृतीय भाग (313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री)ः- बृहस्पति के तृतीय भाग मे जन्में जातक अपने परिवार के सदस्यों से बड़ा व्यक्ति होगा। आश्लेषा नक्षत्र में लग्न के साथ इस भाग में स्थित बृहस्पति पर यदि दुष्ट ग्रहों की दृष्टि हो तो बालक की मृत्यु ग्यारह दिन के अन्दर मृत्यु हो जायेगी।
चतुर्थ भाग (316.40 डिग्री से 320.00 डिग्री)ः- बृहस्पति के चतुर्थ भाग में जन्मे जातक तृतीय भाग मे जन्मे जातकों की तरह ही होते है। परन्तु इनमे यदि बृहस्पति अकेला किसी दृष्ट के बिना उपस्थित हो तो इस स्थिति मे जन्मा बालक लम्बी आयु वाला होगा और एक सामान्य जीवन व्यतीत करेगा।
शुक्रः-
शताभिषज नक्षत्र में स्थित शुक्र पर यदि सूर्य की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक धनवान साहसी तथा स्वभाव से उत्तम होगा। यदि शुक्र पर चन्द्रमा की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक हसमुख एवं आकर्षक व्यक्तित्व वाला होगा। यदि शुक्र पर मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक को अपने परिश्रम का लाभ नही प्राप्त होगा। जिसके कारण वह आर्थिक एवं मानसिक रुप से परेशान रहेगा। यदि शुक्र पर बुध की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक धार्मिक शास्त्रों में कुशल होगा और अपनी इसी कला से धन भी अर्जित करेगा। यदि शुक्र पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक कला संगीत प्रेमी एवं दौलतमंद व्यक्ति होगा। इसके अलावा यदि शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक सुन्दर एवं भाग्यशाली होगा और खेलकूद मे अधिक रुचि लेगा।
प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री)ः- शुक्र के प्रथम भाग मे जन्मे जातक अपने जीवन मे उच्च पद पर कार्य करेंगे और एक अच्छा जीवन व्यतीत करेंगे। 20 वर्ष की छोटी आयु मे ही इनका विवाद हो जाता है।
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री)ः- शुक्र के द्वितीय भाग मे जन्मे जातक चिकित्सक होंगे तथा महिलाए नर्स या स्वागत कर्मचारी के पद पर कार्य करती है। इनका विवाह भी छोटी उम्र मे हो जाता है।
तृतीय भाग (313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री)ः- शुक्र के तृतीय भाग मे जन्मे जातक आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते है। इनका व्यवहार भी कुशल होता है। पुरुष जातकों का विवाह 26 वर्ष की आयु के पहले तथा स्त्री जातकों का विवाह 19 वर्ष के पहले ही हो जाता है।
चतुर्थ भाग (316.40 डिग्री से 320.00 डिग्री)ः- शुक्र के चतुर्थ भाग मे यदि बुध भी उपस्थित हो तो जातक को सरकारी नौकरी की प्राप्ति होगी। इस भाग मे जन्मे जातक छोटी उम्र से ही काम करना प्रारम्भ कर देते है और जीवन मे उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहते है। कुछ परिस्थितियो मे यह भी देखा गया है कि शिक्षा मे परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।
शनिः- शताभिषज नक्षत्र मे उपस्थित शनि पर यदि सूर्य की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक की पत्नी सुन्दर नही होगी तथा जातक गरीब होगा और दूसरो के ऊपर अधिक निर्भर रहेगा। यदि शनि पर चन्द्रमा की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक माता के सुखो से वंचित होगा। परन्तु उसका स्वभाव उत्तम होगा। ऐसे जातकों के दो नाम होंगे साथ ही पत्नी संतान एवं धन का सुख भी प्राप्त करेगा। यदि शनि पर मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक लकवे का शिकार होगा तथा दूसरों के विपरीत कार्य करेगा एवं विदेश मे रहेगा। यदि शनि पर बुध की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक दौलतमंद होगा तथा समाज मे भी सम्मानित व्यक्तियों मे से एक होगा। यदि शनि पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक मंत्री होगा या उसके समान पद पर ही कार्य करेगा अथवा सुरक्षा विभाग मे प्रमुख व्यक्ति होगा। इसके अलावा यदि शनि पर शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक का शरीर मजबूत होगा।
प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री):- शनि के प्रथम भाग मे जन्मे जातक दौलतमंद होंगे तथा पत्नी एवं संतान सुख की प्राप्ति भी करेंगे। इनका व्यवहार भी अच्छा रहेगा तथा अपने कार्यों के प्रति ईमानदार एवं परिश्रमी होंगे। यह अपने जीवन का अधिकतर समय वैज्ञानिक अनुसंधान मे व्यतीत करेंगे और मान पद प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे।
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री):- शनि के द्वितीय भाग मे जन्मे जातक स्वभाव से उग्र एवं क्रोधित होंगे तथा काम वासना मे अधिक रुचि रखने वाले होंगे।
तृतीय भाग (313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री):- शनि के तृतीय भाग मे जन्मे जातक बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते है। इनका स्वभाव काफी अच्छा होता है। कठिन कार्यों को भी करने से नही घबराने वाले होंगे तथा सुरक्षा, पुलिए एवं सैनिक विभाग में कार्यरत रहेंगे।
चतुर्थ भाग (316.40 डिग्री से 320.00 डिग्री):- शनि के चतुर्थ भाग मे जन्मे जातक प्रायः अपने जन्मस्थान से दूर रहते है। परन्तु अपनी वृद्धावस्था मे पुनः वापस अपने जन्मस्थान पर आ जाते है। संतान एवं पत्नी के सुख की प्राप्ति होगी। 55 वर्ष की आयु मे पत्नी के स्वास्थ्य को लेकर काफी धन करना पड़ेगा।
राहूः-
प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री):- राहु के प्रथम भाग यदि सूर्य और बुध की दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु क्षय रोग के द्वारा हो जायेगी।
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री):- राहु के द्वितीय भाग में यदि अशुभ ग्रहों की दृष्टि के साथ लग्न भी पड़ रहा हो तो जातक की मृत्यु 10 वर्ष की आयु मे हो जायेगी। इसके अलावा यदि बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक उच्च स्थिति मे होगा और उसका वैवाहिक जीवन भी सुखमय बीतेगा।
तृतीय भाग (313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री):- राहु के तृतीय भाग मे यदि शनि भी उपस्थित हेा तो जातक स्वभाव से चोर होगा परन्तु गरीबो का मान-सम्मान करेगा और शहर एवं कस्बे का मुख्य व्यक्ति होगा।
चतुर्थ भाग (316.20 डिग्री से 320.00):- राहु के चतुर्थ भाग यदि चन्द्रमा भी उपस्थित हो तो और हस्त और अश्लेषा नक्षत्र में लग्न भी पड़ता हो तो जातक की माता की मृत्यु जातक के छोटे अवस्था मे ही हो जायेगी और माता की मृत्यु के कारण जातक का पिता भी पागल हो जाता है। अथवा जातक का त्याग कर देगा।
केतुः-
प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री)ः- केतु के प्रथम भाग मे यदि अशुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक का जीवन दुःखो से भरा होगा तथा सूर्य और बुध पर बृहस्पति की दृष्टि के साथ-साथ उपस्थित हो तो जातक को अपने जीवन मे अनेक कष्टों से मुक्ति मिलेगी और जातक बुद्धिमान व्यक्ति होगा या एक अच्छा इंजीनियर भी हो सकता है।
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री)ः- केतु के द्वितीय भाग मे जन्मे जातकों के परिणाम प्रथम भाग के समान हीे होंगे। इसके अलावा इन्हें पेट के अल्सर, तेज खांसी और जुखाम जैसी समस्या हो सकती है।
तृतीय भाग (313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री)ः- केतु के तृतीय भाग मे जन्मे जातकों को घर मे चोरी होने के कारण भारी हानि का सामना करना पड़ता है तथा जातक द्वारा भी दण्ड प्राप्त करता है। इस भाग मे जन्मे जातकों को प्रत्येक क्षेत्र मे परेशानियों का सामना करना पड़ता है। परन्तु बृहस्पति की दृष्टि हो तो ये बुरे प्रभाव थोड़े कम हो जाते है।
चतुर्थ भाग (316.40 डिग्री से 320.00 डिग्री)ः- केतु के चतुर्थ भाग मे जन्मे जातकों को अपने जीवन मे अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। धन के क्षेत्र मे परेशानी, शक्तियों और अधिकार के क्षेत्र मे परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस भाग मे जन्मे जातक निम्न वर्ग की स्त्रियों, दासियों से अवैध सम्बन्ध रखते है। जिसके कारण पारिवारिक स्थिति अच्छी नही होती है। इनको अपने जीवन मे 40 वर्ष की आयु के पश्चात स्थिरता देखने को मिलता है।
उपचारः- शताभिषज नक्षत्र मे जन्मे जातकों को यदि अपने जीवन मे किसी भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो उन्हें नीलम पांच स्त्री का चाँदी की अंगूठी मे जड़वा कर शनिवार को दोपहर 01ः30-04ः30 के बीच बुध (चैथी) अंगुल मे धारण करें।
शताभिषज नक्षत्र
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