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सोमवार व्रत का महत्व एवं पौराणिक कथा

सोमवार व्रत का महत्व एवं पौराणिक कथा 1

सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित किया गया है। इस दिन व्रत करने से भगवान शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि आपकी कोई मनोकामना नही पूर्ण हो रही है और आप लम्बे समय से प्रयास कर रहे है तो आपको अवश्य सोमवार का व्रत रखना चाहिए। इसके अलावा सोमवार का दिन चन्द्रदेव को भी समर्पित है। इस दिन चन्द्र दोष् को ठीक किया जा सकता है। चन्द्रमा के उपाय करके कई परेशानियों को दूर कर सकते है।

                                                      सोमवार व्रत की पौराणिक कथा

प्राचीन समय की बात है। किसी नगर मे एक साहुकार रहता था जो भगवान शिव का परम भक्त था। उसके पास धन सम्पत्ति की कोई कमी नही थी लेकिन उसकी कोई भी संतान नही थी जिसके कारण हमेशा दुखी रहता है। संतान प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार को व्रत रखता है। और पूरी श्रद्धा भक्ति भाव से शिव जी की पूजा अर्चना करता था। साहुकार की भक्ति को देखकर माँ पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से आग्रह किया की साहुकार की मनोकामनाएं को पूर्ण करें। तब शिव जी ने कहा हे पार्वती  इस संसार मे सभी प्राणी को उसके कर्मेां का फल मिलता है तथा जिसके भाग्य मे जो हो उसे भोगना पड़ता है, लेकिन पार्वती जी ने साहुकार की भक्ति का माान रखने के लिए साहुकार की मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।

माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहुकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। साहुकार माता पार्वती और भगवान शिव की बाते सुन रहा था। उसे न तो इस बात की खुशी थी और न ही दुख/पहल की तरह ही वह पूरी भक्ति भाव से शिव जी की पूजा कर रहा था। कुछ समय के पश्चात साहुकार के घर मे एक पुत्र का जन्म हुआ और जब बालक ग्यारह वर्ष का हो गया तो साहुकार ने उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया। साहुकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुत इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना जहाँ भी यज्ञ कराओ वहां बाह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना।

दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और बाह्मणों को दान-दक्षिणा देते हुए काशी ओर चल पड़े रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। परन्तु जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए चाल सोची। साहुकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया, उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दुल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं विवाह के पश्चात धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा फिर लड़के का दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया। साहुकार का पुत्र ईमानदार था उसे यह बात गलत लगी उसने सही अवसर देखकर राजकुमारी के चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है। लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हे भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है, मै तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।

जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बाते पढ़ी तो उसने अपने माता पिता को यह बात बताई तब राजा ने अपने पुत्री को विदा नही किया। जिससे बारात वापस चली गई दूसरी ओर साहुकार का लड़का और उसके मामा काशी पहुंचे और वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ किया जिस दिन लड़के की आयु 12 वर्ष की हुई उस दिन यज्ञ रखा गया लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नही है। तब मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ। शिव जी के वरदान के अनुसार कुछ ही देर में उस बालक की मृत्यु हो गई मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरु कर दिया संयोग वश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। तब माता पार्वती ने कहा हे! भोलेनाथ मुझसे इसकी पीड़ा सहन नही हो रही है आप इस व्यक्त के कष्ट को अवश्य दूर रहें। जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले की यह उसी साहूकार का पुत्र है। जिसे मैने 12 वर्ष की आयु का वरदान किया। अब इसकी आयु पूर्ण हो गई है। लेकिन मातृ भाव की ममता से से माता न कहा कि हे!भोलेनाथ आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें नही तो इसके वियोग मे इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जायेंगे। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनो चलते-चलते हुए उसी नगर मे पहुंचे जहाँ उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होने यज्ञ का आयोजन किया उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे प्यासे रहकर बेटे का इंतजार कर रहे थे साथ ही यह प्रण भी रखा कि यदि उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग दें। परन्तु अपने बेटे को जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात शिव जी ने साहूकार के स्वप्न में आकर कहा हे श्रेष्ठी मैने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र का पुनः जीवन दान दिया है। इस प्रकार जो कोई भी पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से कथा सुनता और पढ़ता है उसकी सभी परेशानियाँ दूर होगी और सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होगी।

                                                 सोमवार के दिन क्या करें क्या न करें 

हमारे ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार सोमवार का दिन चन्द्रदेव को समर्पित है। जिन जातकों की कुण्डली में चन्द्रमा अशुभ हो तो उन्हें इस दिन का व्रत रखना चाहिए तथा इससे जुड़े हुए उपाय भी करने चाहिए।

                                                        लाल किताब के अनुसार

इस दिन कुछ महत्वपूर्ण काम करने से चन्द्रमा से जुड़े शुभ फलों की प्राप्ति कर सकते है तथा अशुभ प्रभाव को कम कर सकते है तो आइये जानते है कि इस दिन क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए।

                                                    सोमवार के दिन करें ये काम

☸इस दिन दक्षिण, पश्चिम एवं दिशा मे यात्राएं कर सकते है।
☸चन्द्रमा के दोष को दूर करने के लिए इस दिन दूध का दान कर सकते है।
☸मोती को चन्द्रमा का रत्न माना जाता है। इसलिए इस दिन मोती धारण कर सकते है।
☸शपथ ग्रहण, राज्याभिषेक या नौकरी के आरम्भ के लिए यह दिन शुभ है।
☸सोमवार के दिन निवेश करना अच्छा माना गया है। यदि आप सोना चांदी मे निवेश करना चाहते है तो यह दिन शुभ है।

                                                  सोमवार के दिन न करें ये काम

☸इस दिन गलती से भी माता को कोई कठोर वचन न बोलें।
☸सोमवार को शक्कर युक्त भोजन न करें।
☸इस दिन उत्तर पूर्व और आग्नेय दिशा में यात्रा न करें।

 

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