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16 सितम्बर कन्या संक्रांति

16 सितम्बर कन्या संक्रांति
कन्या संक्रांति की बात करें तो जब कभी सूर्य किसी राशि में प्रवेश करता है तो उस दिन को उस राशि की संक्रांति कहा जाता है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने या एक-दूसरे से मिलने को ही संक्रांति कहा जाता है। सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर छह महीने दक्षिण दिशा की ओर तथा छह महीने उत्तर दिशा की ओर जाकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है। ऐसे में सूर्य के उत्तरायण का समय देवताओं का दिन और दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि मानी जाती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान और दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है।
कन्या संक्रांति एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों में हर्षाेल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व तब मनाया जाता है जब सूर्यदेव सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करते है। कन्या संक्रांति का समय आमतौर पर सितम्बर माह में आता है और इसे कृृषि और फसल से जुड़ी गतिविधियों के साथ भी जोड़ा जाता है। कन्या संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान करने और दान-पुण्य करने का बहुत महत्व होता है। मान्यता के अनुसार इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके सूर्य देवता को जल अर्पित करने से जातक के सभी काम पूरे होते हैं साथ ही कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होता है।

कन्या संक्रांति का महत्वः-
सूर्य देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है तथा यह पंचदेवों में भी शामिल हैं। कन्या संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करने और उन्हें जल अर्पित करने से जातक को बहुत से लाभ प्राप्त होते हैं, इसके अलावा उन्हें बुद्धि, बल, तेज और यश की प्राप्ति होती है। कन्या संक्रांति के दिन सृष्टि के संचालक और जीवनदायी शक्ति माने जाने वाले सूर्य देव की विधिपूर्वक पूजा की जाती है साथ ही सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव की उपासना करने से व्यक्ति को आरोग्य, वैभव तथा सफलता प्राप्त होती है।

कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजा मनाये जाने का महत्वः-

इस दिन को विश्वकर्मा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। वर्ष में पड़ने वाली सभी बारह संक्रांतियाँ दान और पुण्य के उद्देश्यों के लिए अत्यधिक शुभ मानी जाती हैं। उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में कन्या संक्रांति पर विश्वकर्मा पूजा करने का मुख्य अनुष्ठान है। यह त्योहार मानसून के मौसम के अंत और फसल के मौसम की शुरुआत होने का प्रतीक है जिसे सौभाग्य और समृद्धि का समय कहते हैं।
विश्वकर्मा जयंती भगवान विश्वकर्मा जी के जन्मदिन पर मनाई जाती है जिन्हें इस सृृष्टि का दिव्य इंजीनियर माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा जी को देवताओं के वास्तुकार या देवशिल्पी के रूप में भी जाना जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार बड़े पैमाने पर सितंबर माह में मनाया जाता है। भगवान विश्वकर्मा को उत्कृृष्टता और गुणवत्ता का प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा जी नंे सृष्टि के स्वामी भगवान ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार पूरी दुनिया का निर्माण किया। उन्होंनें द्वारका के पवित्र शहर का निर्माण किया जहाँ भगवान श्रीकृृष्ण पांडवों की माया सभा पर शासन करते हैं और देवताओं के लिए कई अद्भुत हथियार बनाए हैं। कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजा का विशेष महत्व है। विश्वकर्मा जिन्हें वास्तुकर्मा और निर्माण कार्यों का देवता माना जाता है वे सभी निर्माण, कलात्मक और तकनीकी कार्यों के संरक्षक होते हैं। कन्या संक्रांति के दिन विशेष रूप से उनके सम्मान के लिए पूजा-अर्चना की जाती है।

पितृ पक्ष की शुरुआतः-

कन्या संक्रांति के दिन से ही पितृ पक्ष की शुरुआत भी होती है। यह अवधि लगभग 16 दिनों तक चलती है जिसमें अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस दिन लोग अपने पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करते हैं।

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कन्या संक्रांति के दिन दान-पुण्य का महत्वः-

कन्या संक्रांति के दिन दान-पुण्य का बहुत महत्व होता है। इस दिन जरूरतमंदों को दान करने से सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन किया गया दान जातक की आत्मा को शुद्ध करने और सकारात्मक कर्म संचित करने का एक मात्र तरीका होता है। कन्या संक्रांति के दिन किया गया दान भोजन, कपड़े, पैसे या अन्य आवश्यक वस्तुओं के रूप में हो सकता है। कन्या संक्रांति के दिन पुण्य कर्म करना भी अत्यधिक शुभ माना जाता है। पुण्य कर्म में पितरों का तर्पण करना, पूजा और होम करना, गायों, पक्षियों और अन्य जानवरों को खिलाना और गरीबों तथा जरूरतमंदों की मदद करना जैसी गतिविधियाँ भी शामिल हो सकती हैं।
कन्या संक्रांति के दिन दैवीय ऊर्जा दान और पुण्य के प्रभावों को और ज्यादा बढ़ा देती है जिससे वे अधिक शक्तिशाली और लाभकारी बन जाते हैं। दान और पुण्य करने से जातक आध्यात्मिक विकास तथा ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं साथ ही समृद्धि और सौभाग्य सुनिश्चित कर सकते हैं। कन्या संक्रांति सभी जातकों के लिए दान और पुण्य करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है जो कि जातक को एक उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाती है।

कन्या संक्रांति के दिन पवित्र स्नान का महत्वः-

कन्या संक्रांति के दिन पवित्र नदियों, झीलों या तालाबों में डुबकी लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन किये गये पवित्र स्नान से-
✨  जातक के द्वारा किये गये पाप और अशुद्धियाँ दूर होती हैं।
✨ जातक के मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है
✨ जातक को आध्यात्मिक विकास और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
✨ जातक को अपने पूर्वजों से क्षमा मिलती है।
✨  जातक को ईश्वर से आशीर्वाद मिलता है।
 जातक के आध्यात्मिक शक्तियों और आंतरिक शक्ति में वृद्धि होती है।कन्या संक्रांति के दिन का पवित्र स्नान शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह से खुद को तरोताजा और पुनर्जीवित करने का एक तरीका माना जाता है। यह खुद को पिछली गलतियों से मुक्त करने, क्षमा मांगने और नई शुरुआत करने का अवसर होता है। माना जाता है कि पवित्र जल में उपचार गुण होते हैं जो न केवल शारीरिक अशुद्धियों को बल्कि आध्यात्मिक अशुद्धियों को भी धो देते हैं।

कन्या संक्रांति की पूजा विधिः-
✨प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
✨उसके बाद पूजा स्थल को साफ करके वहां एक साफ आसन बिछाएं।
✨पूजा स्थल पर भगवान विष्णु, सूर्य देवता, और विश्वकर्मा जी की मूर्तियों या चित्रों को स्थापित करें।
✨पूजा के लिए फल, फूल, वस्त्र, दीपक, अगरबत्ती, पंचामृत, धूप, कपूर, तिल, और अन्य सामग्रीयाँ तैयार करें।
✨सूर्य देवता को सुबह की पहली किरणों के साथ जल अर्पित करें साथ ही उन्हें तिल और गुड़ भी अर्पित करें।
✨निर्माण कार्य, कलाकृृति, या तकनीकी क्षेत्र से जुड़े जातक अपने औजारों और उपकरणों को साफ करके उनकी पूजा करें साथ ही उस पर फूल चढ़ाकर उसके समक्ष दीपक जलाएं।
✨अब विश्वकर्मा जी की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाएं और उन्हें तिल, फूल, और मिठाई अर्पित करें।
✨उसके बाद पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करें साथ ही पवित्र नदी या घर पर जल लेकर पितरों को अर्पित करें।
✨पूजा के बाद भगवान को प्रसाद अर्पित करें और उसे परिवार के सदस्यों में बाटें।
✨गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें, जिसमें गुड़, तिल, चावल, और वस्त्र शामिल हो।
✨अंत में पूजा स्थल को पुनः साफ करें और दीपक जलाकर पूजा समाप्त करें।
✨यदि व्रत कर रहे हैं तो दिनभर पवित्रता बनाए रखें और उपवास या फलाहार करें।

कन्या संक्रांति पुण्य काल मुहूर्तः-

कन्या संक्रान्ति 16 सितम्बर 2024 सोमवार के दिन मनाया जायेगा।
कन्या संक्रांति पुण्य काल – सुबह 11ः 36 मिनट से शाम 05ः 44 मिनट तक।
अवधि – 06 घण्टे 08 मिनट।
कन्या संक्रान्ति महा पुण्य काल – दोपहर 03ः 41 मिनट से शाम 05ः 44 मिनट तक।
अवधि – 02 घण्टे 03 मिनट।
कन्या संक्रान्ति का क्षण – शाम 07ः 53 मिनट।

 

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