31 अक्टूबर 2024, नरक चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली, काली चौदस और रूप चौदस भी कहा जाता है, प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन, मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है और उनके नाम से दीप जलाए जाते हैं, इसके अलावा इस दिन भगवान श्री कृृष्ण और काली माता की आराधना भी की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृृष्ण नें नरकासुर नामक राक्षस का वध करके करीब 16,000 स्त्रियों को मुक्त किया था, जिससे यह दिन विशेष महत्व रखता है। लोग इस दिन दीप जलाकर अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं और घरों में रोशनी बिखेरते हैं।
नरक चतुर्दशी का महत्वः-
नरक चतुर्दशी के इस पावन दिन पर, लोग अपने जीवन से नकारात्मक शक्तियों और बुरी आत्माओं को दूर करने के लिए देवी काली की आराधना करते हैं। मां काली की पूजा करने से भूत-प्रेत और नकारात्मकता का प्रभाव समाप्त किया जा सकता है। आज के दिन घर में पूजा करके, आप अपने जीवन को सकारात्मकता से भर सकते हैं और बुरी शक्तियों को दूर कर सकते हैं। इस दिन, कई हिंदू श्रद्धालु पापों से मुक्ति पाने के लिए अभ्यंग स्नान करते हैं। मान्यता है कि जो लोग इस दिन स्नान करते हैं, वे नरक के कष्टों से सुरक्षित रहते हैं। नरक चतुर्दशी भगवान कृृष्ण की कहानी और राक्षस नरकासुर पर सत्यभामा की विजय का भी प्रतीक है, जो इस दिन के महत्व को और भी बढ़ाता है।
नरक चतुर्दशी से संबंधित पौराणिक कथाः-
पहली कथाः
काली चौदस या नरक चतुर्दशी से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, देवी काली नें शक्तिशाली असुर रक्तबीज को पराजित किया था। रक्तबीज नंे शुम्भ और निशुम्भ के साथ मिलकर देवी पार्वती और देवी काली के खिलाफ युद्ध छेड़ा था। उसे यह वरदान प्राप्त था कि यदि उसका खून जमीन पर गिरेगा, तो उससे उसके अनेक रूप उत्पन्न हो जाएंगे। जब रक्तबीज नंे अपनी विकराल शक्ति के साथ हमला किया, तो देवी काली नें भी अपने सबसे क्रूर रूप में प्रकट होकर उसे चुनौती दी। उन्होंने अपने प्रचंड रूप से रक्तबीज के सभी रूप को भस्म कर दिया और फिर मूल रक्तबीज को मारकर उसका रक्त पी लिया। यह महान विजय काली चौदस के दिन ही हुई, जिससे इस दिन का विशेष महत्व बढ़ गया।
दूसरी कथाः
नरक चतुर्दशी के दिन भगवान हनुमान की एक महत्वपूर्ण कथा है, जो उनकी महानता और बलिदान को दर्शाती है। इस कथा के अनुसार, जब भगवान हनुमान छोटे बालक थे, तब उन्होंने सूर्य को फल समझकर निगल लिया। इससे पूरे संसार में अंधकार छा गया और सभी जीव-जंतु परेशान हो गए।
इस संकट को दूर करने के लिए सभी देवता एकत्र हुए और हनुमान को समझाने का प्रयास किया, लेकिन उनकी कोई भी कोशिश सफल नहीं हुई। तब भगवान इंद्र नंे एक विशेष उपाय किया। उन्होंने हनुमान के मुँह पर वज्र से प्रहार किया। इस प्रहार से हनुमान का मुँह खुल गया और सूर्य बाहर निकल आया। सूर्य के निकलने के बाद संसार में प्रकाश फैल गया, और सभी देवताओं नें राहत की सांस ली। इस दिन को याद करते हुए सभी भक्त भगवान हनुमान की पूजा करते हैं, ताकि वे अकाल मृत्यु से सुरक्षित रह सकें।
नरक चतुर्दशी के दिन क्या करें क्या न करेंः-
नरक चतुर्दशी के दिन ये काम अवश्य करें:
स्नान और तिलकः सूर्याेदय से पहले स्नान करें और अपने माथे पर तिलक लगाना न भूलें।
दीप जलानाः यमराज के नाम का दीप जलाएं। इस दिन उनकी पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय कम होता है।
तेल की मालिशः पूरे शरीर में तेल की मालिश करें और फिर स्नान करें। कहा जाता है कि चतुर्दशी के दिन तेल में मां लक्ष्मी का निवास होता है, जो आपके लिए शुभ फल लाता है।
भगवान श्री कृृष्ण की पूजाः इस दिन भगवान श्री कृृष्ण की पूजा करें, इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
14 दीये जलानाः 14 दीये जलाएं और उन्हें घर के विभिन्न स्थानों पर रखें।
नरक चतुर्दशी के दिन न करें ये कामः–
जीव हत्याः इस दिन यमराज की पूजा होती है, इसलिए किसी भी जीव की हत्या न करें।
दक्षिण दिशा की सफाईः घर की दक्षिण दिशा को गंदा न रखें।
तेल का दानः तेल का दान न करें, क्योंकि इससे मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं।
मांसाहारः इस दिन मांसाहार का सेवन बिल्कुल न करें।
देर तक सोनाः देर तक सोने से बचें, क्योंकि इससे मां लक्ष्मी नाराज होती हैं और घर में दरिद्रता का वास होता है।
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नरक चतुर्दशी पूजा विधि
सूर्याेदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा के लिए घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) का चयन करें।
यमराज, भगवान श्री कृृष्ण, काली माता, भगवान शिव, हनुमान जी और विष्णु जी की प्रतिमाएं स्थापित करें।
अब धूप, दीप, कुमकुम, चावल, फल, फूल, और मिठाई अर्पित करें।
उसके बाद सभी देवताओं के सामने धूप और दीप जलाएं।
कुमकुम से देवताओं के चित्र या प्रतिमाओं पर तिलक लगाएं।
देवी-देवताओं के मंत्रों का जाप करें, जैसे ॐ यमाय नमः और ॐ श्री कृृष्णाय नमः।
पूजा के अंत में सभी देवताओं की आरती करें।
पूजा के बाद बनाए गए प्रसाद का वितरण करें और परिवार के सभी सदस्यों को दें।
नरक चतुर्दशी के दिन यम दीपक जलाने का महत्वः-
यमराज की कृृपाः इस दिन यमराज को दीपक अर्पित किया जाता है, जिससे उनकी कृृपा प्राप्त करने की कामना की जाती है। दीप जलाने से यह माना जाता है कि यमराज की दया से व्यक्ति नरक से मुक्त होता है।
पूर्वजों की शांतिः यम दीपक जलाकर हम अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं। यह मान्यता है कि इस दिन जलाया गया दीपक उनके प्रति हमारी श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है।
अंधकार से प्रकाशः यम दीपक जलाने का अर्थ है जीवन के अंधकार को दूर करना और ज्ञान एवं प्रकाश की ओर बढ़ना। यह एक आध्यात्मिक संदेश है जो जीवन में सकारात्मकता लाने का कार्य करता है।
पुण्य की प्राप्तिः इस दिन दीप जलाने से व्यक्ति को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और यह विश्वास किया जाता है कि यम दीपक जलाने से जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
परिवार की रक्षाः यम दीपक जलाने से परिवार की रक्षा और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। यह हमें अपने परिवार के सदस्यों के लिए प्रार्थना करने की प्रेरणा देता है।
नरक चतुर्दशी शुभ मुहूर्तः-
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – 30 अक्टूबर 2024 को दोपहर 01ः 15 मिनट से,
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 31 अक्टूबर 2024 को दोपहर 03ः 52 मिनट पर।
- नरक चतुर्दशी 31 अक्टूबर 2024 बृहस्पतिवार के दिन मनाया जाएगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः-
नरक चतुर्दशी क्या है?
नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है, भगवान श्री कृृष्ण के द्वारा नरकासुर का वध करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसमें विशेष पूजा और दीपदान की परंपरा है।
नरक चतुर्दशी वर्ष 2024 में कब है?
नरक चतुर्दशी का त्योहार 31 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा।
नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली में क्या अंतर है?
नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली में कोई अंतर नही है दोनो एक ही त्योहार है। छोटी दिवाली का नाम इसीलिए है क्योंकि यह दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती है और इसमें दीप जलाने की भी परंपरा होती है।
नरक चतुर्दशी पर क्या विशेष पूजा की जाती है?
इस दिन अभ्यंग स्नान, यम दीपदान और यम तर्पण जैसी विशेष पूजा विधियाँ भी की जाती हैं। इस दिन भगवान श्री कृृष्ण और यमराज की पूजा करने का भी विशेष महत्व होता है।
अभ्यंग स्नान का क्या महत्व है?
अभ्यंग स्नान एक विशेष स्नान है जिसमें उबटन का उपयोग किया जाता है। यह स्नान शरीर की शुद्धि और स्वास्थ्य लाभ के लिए किया जाता है और इससे पापों का नाश माना जाता है।
नरक चतुर्दशी पर यम दीपदान क्यों किया जाता है?
यम दीपदान यमराज की प्रसन्नता के लिए किया जाता है, ताकि परिवार को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिले। दीप जलाने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
क्या नरक चतुर्दशी का संबंध दिवाली से है?
हाँ, नरक चतुर्दशी का दिवाली से गहरा संबंध है। इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है और यह दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती है। इस दिन की पूजा दिवाली की तैयारियों का एक हिस्सा होती है।
नरक चतुर्दशी पर क्या दान करना चाहिए?
इस दिन काले तिल, गुड़ और वस्त्र का दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इनका दान पापों का नाश करता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति में सहायक होता है।
नरक चतुर्दशी के दिन कौन सा प्रसाद चढ़ाया जाता है?
इस दिन गुड़, धनिया और तिल का विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है, जिसका धार्मिक और स्वास्थ्यवर्धक महत्व होता है।
नरक चतुर्दशी के दिन किस देवता की पूजा की जाती है?
इस दिन मुख्य रूप से भगवान श्री कृृष्ण, यमराज और लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है।