हिन्दू धर्म में विवाह किसी भी जातक के जीवन की एक नई शुरूआत होती है। जिस तरह से बच्चे के जन्म के बाद उसके नये जीवन की शुरूआत होती है ठीक वैसे ही विवाह के बाद भी जातक का एक नया जीवन शुरू होता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विभिन्न कारक दाम्पत्य जीवन में बँधे जोड़ों को प्रभावित करते हैं, ऐसे में इसके प्रभाव को समझने, दीर्घायु जीवन जीने और दाम्पत्य जीवन का आनन्द प्राप्त करने के लिए सदैव अपने राशि के अनुकूलता की जाँच करनी चाहिए और विवाह से पहले ही कुण्डली मिलान अवश्य करवा लेना चाहिए। अब बात करते हैं दोषों की तो कुण्डली मिलान में नाड़ी दोष को सबसे अशुभ दोष माना जाता है। यदि किसी जातक की कुण्डली में नाड़ी दोष का निर्माण होता है तो आने वाली अगली पीढ़ी कमजोर होती है या संतान के बिल्कुल न होने की संभावना होती है, तो आइए ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी के द्वारा विस्तार से जानते हैं कि नाड़ी दोष क्या होता है।
क्या होता है नाड़ी दोषः-
कुण्डली मिलान करते समय उत्पन्न होने वाले दोषों में से बात करें यदि हम नाड़ी दोष की तो हिन्दू ज्योतिष के अनुसार नाड़ी दोष पूरे आठ व्यापक पहलुओं या कूटों में से एक है। जब दो संभावित भागीदारों की नाड़ी एक समान होती है तो ऐसी स्थिति में नाड़ी दोष का निर्माण होता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार नाड़ी गुण विवाहित जोड़े के बीच में मनोवैज्ञानिक और अनुवांशिक रूप से अनुकूलता सुनिश्चित करता है। इसी प्रकार से अष्टकूट मिलान के 36 बिन्दुओं में से नाड़ी कूट को मात्र 8 अंक ही प्रदान किये गये हंै जो कि सभी अन्य कूटों या गुणों के लिए सबसे अधिकतम अंक है। नाड़ी दोष कुण्डली के सभी दोषों में एक बहुत ही गंभीर दोष से सम्बन्धित है इसलिए यह दोष सभी दाम्पत्य जोड़ों के बीच में विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।
नाड़ी दोष के प्रभावः-
यदि कुण्डली में नाड़ी दोष उत्पन्न हो तो उसके प्रभाव निम्न प्रकार से बताये जा सकते हैं-
✨ यदि कुण्डली में नाड़ी दोष का निर्माण हो तो जातक का दाम्पत्य जीवन परेशानियों तथा कई प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ होता है।
✨ इस दोष के प्रभाव से पति और पत्नी को स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याएं होने लगती हैं।
✨ यदि पति और पत्नी दोनों की कुण्डली में एक समान नाड़ी दोष हो या दोनों में से किसी एक की कुण्डली में नाड़ी दोष उत्पन्न हो तो ऐसी स्थिति में दोनों के बीच दरार उत्पन्न होता है तथा थोड़ी बहुत आकर्षण की कमी भी महसूस हो सकती है।
✨ कुण्डली में नाड़ी दोष उत्पन्न होने से विवाहित दम्पतियों को किसी बहुत बड़ी दुर्घटना का सामना करना पड़ सकता है साथ ही वैवाहिक जीवन में कई प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।
✨ कुण्डली में नाड़ी दोष उत्पन्न होने से जातक के संतान का स्वास्थ्य खराब हो सकता है, इसके अलावा संतान शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग पैदा हो सकता है।
✨ यदि कुण्डली में नाड़ी दोष की स्थिति उत्पन्न हो तो ऐसी स्थिति में महिलाएं बांझ हो सकती हैं जिसके कारण वह कभी किसी बच्चे को जन्म नही दे पायेंगी।
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कुण्डली में उत्पन्न होने वाले नाड़ी दोष के प्रकारः-
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुण्डली में उत्पन्न होने वाले नाड़ी दोष के तीन प्रकार बताये गये हैं, यहाँ बताये गये प्रत्येक नाड़ी दोष प्राथमिक गुणों या प्राकृति यानि वात, पित्त और कफ का प्रतिनिधित्व करते हैं।
आदि नाड़ीः-
आदि नाड़ी यानि सबसे पहली नाड़ी के बारे में बात करें तो यह एक प्रकार से वात का हिस्सा है, इस तरह की नाड़ी का तात्पर्य जातक के ऊपर से नीचे की ओर यानि सिर से पैर तक का हिस्सा होता है। जातक की कुण्डली में नाड़ी दोष का निर्माण तब होता है जब दोनों ही भागीदारों की जन्म कुण्डली में आदि नाड़ी उत्पन्न होती है। इस तरह की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन में तलाक या वाद-विवाद की समस्या उत्पन्न हो सकती है, इसके अलावा जातक के जीवन में संतान से सम्बन्धित समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
मध्य नाड़ीः-
मध्य नाड़ी, नाड़ी दोष का दूसरा प्रकार होता है। यह नाड़ी जातक के अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। मध्य नाड़ी जातक के शरीर के ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर दोनों ही दिशाओं में शक्ति तथा ऊर्जा के प्रभाव को चिन्हित करता है। मध्य नाड़ी की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब स्त्री और पुरूष दोनों ही भागीदारों की कुण्डली में मध्य नाड़ी होती है। अतः मध्य नाड़ी के उत्पन्न होने से दाम्पत्य जीवन में तलाक होने तक की संभावना उत्पन्न हो जाती है, इसके अलावा संतान को बचपन से ही स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न हो सकती है।
अंत्य नाड़ीः-
अंत्य नाड़ी को नाड़ी दोष का तीसरा प्रकार माना जाता है। यह नाड़ी जल तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाली होती है, यह नाड़ी जातक के शिखर से नीचे तक शक्ति के प्रवाह का प्रतिनिधित्व करती है। यदि स्त्री और पुरूष दोनों ही जातकों की कुण्डली में इस दोष का निर्माण हो रहा हो तो ऐसी स्थिति में जातक की मृत्यु तक हो सकती है, इसके अलावा कम उम्र में ही विवाह होने से दाम्पत्य जीवन में खटास या स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
नाड़ी दोष उत्पन्न होने के कारणः-
✨ ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा अश्विनी, आद्र्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में स्थित हो तो ऐसी स्थिति में जातक की आदि नाड़ी होती है।
✨ यदि जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वा फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में स्थित हो तो ऐसी स्थिति में जातक की मध्य नाड़ी होती है।
✨ यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा कøतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती नक्षत्र में स्थित हो तो ऐसी स्थिति में जातक की अंत्य नाड़ी होती है।
✨ स्त्री और पुरूष दोनों ही जातकों की कुण्डली में यदि एक ही नाड़ी स्थित हो तो ऐसी स्थिति में जातक के दाम्पत्य जीवन में कई प्रकार की चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। अतः कई अलग-अलग प्रकार के नाड़ी दोष जातक को अलग-अलग परिणाम प्रस्तुत करते हैं।
✨किसी जातक की कुण्डली में चन्द्रमा की उपस्थिति ही नाड़ी दोष उत्पन्न करने में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। अतः स्त्री और पुरूष दोनों ही जातकों की कुण्डली में चन्द्र राशि का एक ही नाड़ी के अन्तर्गत होना नाड़ी दोष का निर्माण करता है।
कुण्डली मिलान में नाड़ी दोष का निवारणः-
नाड़ी दोष को कुण्डली से समाप्त करने के कुछ महत्वपूर्ण नियम इस प्रकार हैं।
✨ यदि किसी स्त्री और पुरूष जातकों का नक्षत्र और राशि दोनों एक ही हो तो ऐसी स्थिति में कुण्डली में बना हुआ नाड़ी दोष पूरी तरह से समाप्त हो जाता है।
✨ यदि किसी स्त्री और पुरूष की एक ही जन्म राशि हो और नक्षत्र अलग-अलग हो तो ऐसी स्थिति में कुण्डली में बना हुआ नाड़ी दोष पूरी तरह से निरस्त हो जाता है परन्तु एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि लड़की का नक्षत्र लड़के के नक्षत्र से पहले न हो।
✨ यदि किसी जातक की कुण्डली में वर और वधू का नक्षत्र एक ही हो परन्तु जन्म कुण्डली में राशि अलग-अलग हो तो ऐसी स्थिति में नाड़ी दोष पूरी तरह से समाप्त हो जाता है परन्तु एक बात का विशेष ध्यान रखें कि लड़की की जन्म राशि और जन्म चरण लड़के के नक्षत्र से पहले न हो।
✨ यदि किसी जातक की कुण्डली के राशि स्वामी बुध, शुक्र या बृहस्पतिदेव हों तो ऐसी स्थिति में नाड़ी दोष होने के बावजूद भी नाड़ी दोष समाप्त हो जाते हैं।
✨ यदि कुण्डली में नाड़ी दोष किसी कारणवश उत्पन्न हो जाये तो ऐसी स्थिति में इस दोष को समाप्त करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना बहुत कारगार होता है। अतः भगवान शिव जी के इस मंत्र का श्रद्धापूर्वक जाप अवश्य करना चाहिए।
✨ कुण्डली में बने हुए नाड़ी दोष के बुरे प्रभाव को समाप्त करने के लिए जीवनसाथी के साथ किसी अनुभवी ज्योतिष के मार्गदर्शन में पूजा अवश्य करवानी चाहिए।
✨ यदि किसी स्त्री जातक की कुण्डली में नाड़ी दोष उत्पन्न हो तो ऐसी स्थिति में वधू का विवाह सबसे पहले भगवान विष्णु जी से करें, ऐसा करने से नाड़ी दोष पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं।
✨ आपको बता दें कुण्डली में स्थित ज्यादातर दोष जातक के पिछले जन्म के गलत कर्मों और पापों के कारण होता है। अतः इसके बुरे प्रभावों को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए जितना हो सके अच्छा कर्म करते रहना चाहिए, इसके अलावा गरीब या जरूरतमंद व्यक्तियों को कपड़ा, भोजन तथा अनाज दान करना चाहिए।
✨ इसके अलावा नाड़ी दोष के बुरे प्रभावों को दूर करने के लिए एक या एक से अधिक ब्राह्मण परिवारों को स्वर्ण नाड़ी दान करना चाहिए साथ ही अपने जन्मदिन पर अपने वजन के बराबर का भोजन भी अवश्य दान करना चाहिए, ऐसा करने से कुण्डली में उत्पन्न नाड़ी दोष पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं।