Holi 2024, मथुरा, वृन्दावन में कैसे मनाई जाती है होली

जैसा की आपको पता है भारत देश एक त्योहारों का देश है जहाँ अलग-अलग तरीके से छोटे या बड़े त्योहारों को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इन्हीं त्योहारों में से एक त्योहार होता है होली यह पर्व भारत देश में बहुत ही उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के मुख्य त्योहार यानि रंगों के पर्व का अत्यधिक महत्व होता है। होली का पर्व दो दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व होता है जिसमें पहला दिन होलिका दहन का होता है जिसे हम छोटी होली कहते हैं और दूसरा दिन होली का होता है। होली का यह त्योहार पहले केवल एक हिन्दू धर्म का त्योहार था परन्तु जैसे-जैसे यह दुनिया आगे बढ़ रही है पूरी दुनिया में होली का यह उत्सव मनाया जाने लगा है। वसंत ऋतु में आने वाला यह त्योहार हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। वास्तव में यह भारत का एक अत्यन्त प्राचीन पर्व है जो होली या होलिका के नाम से भी जाना जाता है।

होलिका दहन मनाने की पौराणिक कथा

होलिका दहन मनाने की पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा था। उनका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु जी का एक परम भक्त था और हर समय विष्णु जी की भक्ति में लीन रहता था। विष्णु जी की भक्ति करने के कारण वह प्रहलाद से नफरत करने लगा और उसे मारने का भी हर संभव प्रयास करने लगा। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन से कहा कि वह प्रहलाद को अपने गोद में लेकर अग्नि में बैठ जायें उसने बिल्कुल वैसा ही किया जिसके परिणामस्वरूप भक्त प्रहलाद विष्णु जी की कृपा से बच गये और होलिका जलकर राख हो गई। यह सब देखकर विष्णु जी अत्यधिक क्रोधित हो गये और उन्होंने हिरण्यकश्यप की क्रूरता को समाप्त करने के लिए नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। उसी दिन से होलिका दहन का प्रचलन शुरू हुआ और होलिका दहन की अग्नि में बुराइयों को जलाकर समाप्त होने के बाद खुशियाँ मनाने के लिए अगले ही दिन रंगों का त्योहार यानि होली मनाये जाने की परम्परा की शुरूआत हुई।

होली मनाये जाने का महत्व

भारत देश में होली के त्योहार का अत्यधिक महत्व होता है। यह त्योहार मुख्य रूप से वसंत ऋतु यानि वसंत के समय की फसल के दौरान ही मनाया जाता है जो कि सर्दियों के अंत होने का भी प्रतीक माना जाता है। फाल्गुन माह का यह उत्सव फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि की शाम के समय से ही शुरू हो जाता है। दो दिनों तक मनाया जाने वाला यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस विशेष दिन पर लोग अग्नि जलाकर भगवान विष्णु जी के लिए उनके भक्त प्रहलाद की जीत का जश्न मनाते हैं। होलिका के दिन पूजा करने से माना जाता है कि घर में सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है, इसके अलावा इस दिन पूजा करने से जातक को हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।

सामाजिक महत्व

होली के त्योहार का हिन्दू धर्म में सामाजिक महत्व भी होता है। यह त्योहार समाज के लोगों का एक दूसरे के बीच रिश्तों को मजबूत करने में भी अत्यधिक सहायक होता है। कई धर्मों में होली का त्योहार मनाये जाने के कारण शत्रु भी एक-दूसरे के मित्र बन जाते हैं और आपस में हुए किसी भी तनाव और आपसी मतभेद को भूल जाते हैं। होली के त्योहार के दिन लोग अमीर और गरीब में कोई भेदभाव नही करते हैं और सभी के साथ आपसी भाईचारे और मिलनसार स्वभाव के साथ इस त्योहार को मनाते हैं। वास्तव में यह त्योहार हम सभी के बीच में सामाजिक रूप से भी बहुत ज्यादा मायने रखता है।

साहित्य में होली का इतिहास

प्राचीन काल के अनुसार संस्कृत साहित्य में होली के अनेक रूपों का विस्तृत वर्णन है। भक्तिकाल और रीतिकाल में भी होली और फाल्गुन माह का विशिष्ट महत्व होता है। महाकवि सूरदास ने वसंत होली पर 78 पद लिखे हैं। पद्माकर ने भी होली विषय में प्रचुर रचनाएं की हैं। सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरों, बहादुर शाह जफर, जैसे मुस्लिम सम्प्रदाय का पालन करने वाले कवियों ने भी होली पर अत्यधिक सुन्दर रचनाएं लिखी हैं। सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा के संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया था। इसके अलावा इतिहास में अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ भी होली खेलने का वर्णन मिलता है।

वृन्दावन में कैसे मनाई जाती है होली 

वृन्दावन में होली का पर्व मनाये जाने की परम्परा कुछ अलग ही होती है वहाँ पर बांके बिहारी मंदिर में कृष्ण प्रेमी के शहर में होली उत्सव मनाये जाने का केन्द्र है। वृन्दावन में होली की शुरूआत फूलों की बौछार के साथ शुरू होती है उसके बाद सभी विधवा महिलाओं की होली होती है। वास्तविक होली त्योहार के एक दिन पहले रंगों के भयानक दंगल के साथ समाप्त होती है। इस पर्व का आनन्द उठाने के लिए सभी उम्र के लोग अलग-अलग रंगों से नहाकर अत्यधिक उत्साह के साथ होली का यह पावन पर्व मनाते हैं।

मथुरा में होली का उत्सव मनाये जाने की परम्परा

पूरे भारत में रंगों का यह त्योहार मनाये जाने की परम्परा के अनुसार यह त्योहार मथुरा में भी अत्यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। मथुरा शहर जहाँ पर भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था वह स्थान हिन्दूओं के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है। यहाँ पर होली के एक दिन पूर्व संध्या पर मथुरा में लोग अलाव जलाते और साथ में भक्ति गीत भी गाया करते हैं। यह पर्व अत्यधिक भव्यता के साथ मनाया जाता है साथ ही रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन करके उसमें मेजबानी की जाती है। इस दिन होली के लिए जुलूस भी निकाले जाते हैं जो कि विश्राम घाट से शुरू होते हुए होली गेट के पास जाकर समाप्त हो जाती है, उसके बाद दोपहर के समय में कहीं आस-पास लोकप्रिय कार्यक्रम भी किये जाते हैं।

होली शुभ मुहूर्त

होलिका दहन मुहूर्त – 24 मार्च रात्रि 11ः13 से 12ः27  25 मार्च तक। 
होली 25 मार्च 2024 को सोमवार के दिन मनाया जायेगा।
फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि प्रारम्भः- 24 मार्च 2024 सुबह 09ः54 मिनट से।
फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि समाप्तः- 25 मार्च 2024 दोपहर 12ः29 मिनट तक।

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