कुम्भ संक्रान्ति 2023

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य लगभग प्रत्येक महीने एक से दूसरी राशि में अपना स्थान परिवर्तन करता है। यह परिवर्तन ही संक्रान्ति कहलाता है, अभी सूर्य देव मकर राशि में विचरण कर रहे है, फरवरी को सूर्य मकर राशि की यात्रा को छोड़कर कुम्भ राशि में प्रवेश कर चुके है, सूर्य के एक महीने तक कुम्भ राशि में गोचर करने से इसको कुम्भ संक्रान्ति कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सूर्य का आशीर्वाद पाने के लिए सूर्य चालीसा का पाठ करना बहुत लाभकारी होता है, कुम्भ संक्रान्ति के दिन पूजा-पाठ से मान-सम्मान में वृद्धि और समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है।

कुम्भ संक्रान्ति का अर्थ

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक सूर्य गतिमान होता है और वों एक रैखिक-पथ पर गति करता है, सूर्य के इसी गति के कारण ये अपना स्थान परिवर्तन करता है और साथ ही सभी राशियों में गोचर करता है, सूर्य प्रत्येक राशि में एक माह तक रहता है उसके पश्चात् दूसरी राशि में प्रवेश करता है। जिसको हिन्दू पंचांग और ज्योतिष शास्त्र में संक्रान्ति की संज्ञा दी गई है, मकर संक्रान्ति के बाद सूर्य मकर से कुम्भ राशि में गोचर करता है। जिसे कुम्भ संक्रान्ति कहा जाता है। हिन्दू धर्म मे कुम्भ और मीन संक्रान्ति को महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इसी समय में ऋतु-परिवर्तन भी होता है जिसके तुरन्त बाद ही हिन्दू परिवर्तन का आरम्भ होता है।

कुम्भ संक्रान्ति कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में देवताओं और असुरो ने मिलकर समुद्र मंथन किया था तब समुद्र से 14 रत्न उत्पन्न हुआ और अंत में अमृत भरा घड़ा निकला अमृत के बंटवारे को लेकर देवता और असुरों में संघर्ष हुआ, इस संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदे चार जगहो पर गिरी थी प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। जब सूर्य कुम्भ राशि में गोचर करते है तब हरिद्वार में कुम्भ मेलें का आयोजन का होता है, जहाँ पर स्नान दान और पूजा का खास महत्व होता है।

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एक अन्य कथा

प्राचीनकाल में हरिदास नाम का एक धार्मिक और दयालु स्वभाव का ब्राह्मण था उसकी पत्नी का नाम गुणवती था जो अपने पति के समान ही धर्मपरायण थी, गुणवती ने अपने जीवन काल मे सभी देवताओं का व्रत रखा और उनकी पूजा की परन्तु धर्मराज की कभी पूजा नही किया और ना ही उनके नाम से कोई व्रत दान और पुण्य किया, मृत्य के पश्चात् जब चित्रगुप्त उनके पापों का लेखा-जोखा पढ़ रहे थे तब उन्होने गुणवती को अनजाने में हुई उनके इस गलती के बार में बताया कि गुणवती ने कभी धर्मराज के नाम से व्रत रखा और ना ही दान-पुण्य किया, यह सुनकर गुणवती ने कहा, यह भूल मुझसे अनजाने मे हुई है इसको सुधारने का कोई उपाय बताइए। तब उन्होंने बताया कि जब सूर्य देवता उत्तरायण होते है अर्थात् मकर संक्रान्ति के दिन से ही धर्मराज की पूजा आरम्भ करना और सुनना है, पूजा के बाद अपने सामर्थ्य अनुसार दान भी देना चाहिए तत्पश्चात् साल भर के उद्यापन के करने से ऐसे व्यक्ति को जीवन में सभी सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

बारह राशियोें पर कुम्भ संक्रान्ति का प्रभाव

मेषः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से मेष राशि के जातकों के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है, उनके व्यापार मे लाभ तथा नौकरी में भी उन्नति होती है।

वृषः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से वृषभ राशि के जातकों के स्वभाव में कटुता आ जाती है, उनको अपने नौकरी/व्यवसाय में अधिक मेहनत के बाद ही सफलता मिलेगी, खर्चें में वृद्धि के योग भी बनते है इसलिए पहले से सावधान रहें।

मिथुनः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से इस राशियों वालो के नौकरी और व्यवसाय में पहले से सुधार होगा लेकिन इनको अपने सेहत पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

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कर्कः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से कर्क राशि वालें जातकों के आमदनी में वृद्धि होगी तथा उनको भूमि, भवन और वाहन का सुख भी मिलेगा।

सिंहः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से इनके खर्चों में गड़बड़ी आ जाती है। इसलिए फालतू खर्चों से बचें, क्रोध करने से हानि होगा, कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

कन्याः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से इनके स्वभाव में कटुता आ जाता है लेकिन आपको अपने क्रोध त्यागकर कारोबार पर ध्यान देना चाहिए।

तुलाः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से आपके कार्यक्षेत्र मेें व्यस्तता और अधिक बढ़ जाएगी, पिता के सेहत पर आपको ध्यान देना चाहिए क्योंकि उनको कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

वृश्चिकः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से वृश्चिक जातकों को मिला-जुला परिणाम मिलता है, इस समय इनकों अपने माता-पिता के सेहत का ध्यान रखना चाहिए।

धनुः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से धनु राशि के जातकों के नौकरी और व्यापार में उन्नति होता है, उनके नौकरी का योग तथा नौकरी परिवर्तन के योग भी बनता है, क्रोध पर नियंत्रण रखें तथा वाद-विवाद से बचकर रहें।

मकरः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से मकर राशि के जातकों को अत्यधिक मेहनत करना पड़ता है लेकिन फिर भी उनको मनचाहा परिणाम नही मिलता है, भवन और वाहन का सुख मिलता है।

कुम्भः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से नौकरी में उन्नति का योग बनता है, कार्यक्षेत्र में व्यस्तता रहती है लेकिन आपको अपने सेहत पर ध्यान रखना चाहिए।

मीनः- सूर्य ग्रह के कुम्भ में गोचर से आपके आय में वृद्धि होगी, सम्पत्ति से धन लाभ की सम्भावना रहेगी, व्यर्थ के वाद-विवाद से बचकर रहें अन्यथा मुश्किलें बढ़ सकती है।

कुम्भ संक्रान्ति का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुम्भ संक्रान्ति का महत्व पूर्णिमा और अमावस्या तिथि पर अत्यधिक होता है, कहा यह भी जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, कुम्भ संक्रान्ति के दिन दान करने से जातकों को पापों से मुक्ति मिलती है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी होती है, कुम्भ संक्रान्ति के दिन धान, कम्बल और गरम कपड़े देने के रिवाज भी है।

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कुम्भ संक्रान्ति पूजा विधि

☸ ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सूर्य देव की उपासना करें, उन्हें अर्घ्य  दे और आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ भी करें।
☸ तत्पश्चात् गायत्री-मंत्र का जाप करें।
☸ अन्त में भगवान विष्णु का स्मरण करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
☸ तदोपरांत पीला वस्त्र धारण कर भगवान सूर्य की पूजा फल, धूप-दीप, दूर्वा आदि से करे उसके बाद आरती अर्चना कर भगवान से सुख-शांति और समृद्धि की कामना करें।
☸ अन्त में अपने सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को दान दें।

सूर्य मंत्र

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते
अनुकम्पय मां देवी गृहाणर्घ्य दिवाकर

गायत्री मंत्र

ओम भूर भुवः स्वः तत् सवितुर्वदेण्यं
भर्गों देवस्य धीमहिं धियो यो नः प्रचोदयात्

विष्णु मंत्र

शांता कारम भुजइंग शयनमं पद्य नाभं सुरेशम्।
विश्वाधारं गगनसदृश्यं मेघवर्णन शुभांगम्
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनमं योगि भिर्रूान नमभ्यम्।।

कुम्भ संक्रान्ति शुभ तिथि एवं मुहूर्त

हिन्दी पंचांग के अनुसार सूर्य देव 13 फरवरी को देर रात 03 बजकर 41 मिनट पर कुम्भ राशि में प्रवेश करेंगे, इसे सनातन धर्म में उदया तिथि माना जाता है अतः 13 फरवरी को कुम्भ संक्रान्ति है तथा पुण्य काल सूर्योदय से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक है।