ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी से जानें दिशा शूल और यात्रा-मुहूर्त विचार के बारे में विस्तार सेः

ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी से जानें दिशा शूल और यात्रा-मुहूर्त विचार के बारे में विस्तार सेः

ज्योतिष शास्त्र में दिशा शूल का महत्व बहुत अधिक होता है। किसी विशेष दिशा में यात्रा करने पर यदि उस दिशा में शूल या कांटा होता है, तो उसे दिशा शूल कहा जाता है। दिशा शूल का अर्थ होता है वह दिशा जिसमें यात्रा करते समय किसी न किसी प्रकार का संकट या बाधा आने की संभावना हो। यह विशेषकर उस दिशा से संबंधित नक्षत्र, ग्रहों या तिथियों के प्रभाव के कारण उत्पन्न होता है।

दिशा शूल का महत्वः

दिशा शूल उस दिशा से संबंधित होता है जहां यात्रा के दौरान संकट उत्पन्न होने की संभावना रहती है। इसे यात्रा के मार्ग में आने वाली समस्याओं के रूप में देखा जाता है। दिशा शूल के कारण यात्रा के दौरान शारीरिक कष्ट, मानसिक तनाव, दुर्घटनाएँ या अन्य अनहोनी घटनाएँ घट सकती हैं। इसलिए, जब भी किसी दिशा विशेष में यात्रा की योजना बनाई जाए, तो यह देखना आवश्यक होता है कि वह दिशा शूल से प्रभावित तो नहीं है।

यात्रा-मुहूर्त विचारः

यात्रा करने से पहले उसके मुहूर्त का सही चयन करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए विभिन्न तत्वों का ध्यान रखना चाहिए जैसे दिशा शूल, नक्षत्र शूल, योगिनी, भद्रा, चंद्रमा, तारा, शुभ नक्षत्र, शुभ तिथि इत्यादि।

शुभ तिथिः

यात्रा के लिए शुभ तिथियाँ निम्नलिखित हैंः
भद्रादि दोषरहित तिथियाँः 2, 3, 5, 7, 10, 11, कृृष्ण पक्ष की प्रतिपदा और 13।
शुभ नक्षत्रः
शुभ नक्षत्रों में यात्रा करना शुभ माना जाता हैः
अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, रेवती।
सर्व दिग्गमन नक्षत्रः
अश्विनी, पुष्य, अनुराधा और हस्त ये नक्षत्र यात्रा के लिए उत्तम माने जाते हैं।
मध्य नक्षत्रः
रोहिणी, तीनों उत्तरा, तीनों पूर्वा, ज्येष्ठा, मूल और शतभिषा नक्षत्रों को मध्य नक्षत्र माना जाता है।
शुभ होराः
चंद्र, बुध, गुरु और शुक्र का होरा शुभ होता है।
शुभ चंद्रमाः
जन्म राशि के आधार पर 1, 3, 6, 7, 10 और 11वीं राशि का चंद्रमा शुभ माना जाता है। इसके अलावा शुक्ल पक्ष में 2, 5 और 9वीं राशि का चंद्रमा भी शुभ होता है।
शुभ ताराः
जन्म नक्षत्र से दिन नक्षत्र तक की संख्या को 9 से भाग दें, यदि शेष 1, 2, 4, 6, 8 या 0 बचता है तो यह शुभ होता है।
यात्रा में शुभाशुभ लग्नः
शुभ लग्न वह है जिसमें 1, 4, 5, 7 और 10 स्थानों में शुभ ग्रह और 3, 6, 10 और 11 में पाप ग्रह होते हैं।
अशुभ लग्न वह है जिसमें चंद्रमा 1, 6, 8, 12वें स्थानों पर हो या पाप ग्रहों से युक्त हो। शनि 10वें, शुक्र 6, 7, 8, 12वें लग्नेश हों।

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यात्रा के पहले त्याज्य वस्तुएंः

यात्रा से पहले कुछ वस्तुएं त्याग देना आवश्यक होता हैः
तीन दिन पहलेः दूध।
पाँच दिन पहलेः हजामत।
तीन दिन पहलेः तेल।
सात दिन पहलेः मैथुन।

यदि उपर्युक्त समय का पालन करना संभव न हो तो कम से कम एक दिन पहले इन वस्तुओं को त्याग देना चाहिए।

यात्रा के पहले ग्राह्य वस्तुएः

रवि को पान, सोम को दर्पन, मंगल को गुड़ करिए अर्पन।
बुध को धनिया, बीफे जीरा, शुक्र कहें मोहिं दधि को पीरा।
कहें शनि मैं अदरख पावा, सुख सम्पत्ति निश्चय घर लावा।

यात्रा से पहले कुछ वस्तुएं ग्रहण की जाती हैं जिसका विस्तार से वर्णन निम्नलिखित है:
रविावर को पान।
सोमवार को दर्पण देखना चाहिए।
मंगलवार को गुड़।
बुधवार को धनिया और जीरा।
शुक्रवार को दही।
शनिवार को अदरक।
इन वस्तुओं को ग्रहण करने से सुख, संपत्ति और शांति की प्राप्ति होती है।

दिशा शूल और यात्रा नियमः

ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी से जानें दिशा शूल और यात्रा-मुहूर्त विचार के बारे में विस्तार सेः
ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी से जानें दिशा शूल और यात्रा-मुहूर्त विचार के बारे में विस्तार सेः

किसी भी दिशा में यात्रा करने से पहले दिशाशूल और अन्य शास्त्रों द्वारा बताए गए नियमों का पालन करना जरूरी होता है। यह दिशा और समय के अनुसार तय होता है कि यात्रा शुभ रहेगी या अशुभ।

दिशाशूल के अनुसार इस दिन इन दिशाओं में यात्रा करने से बचेंः

सोम और शनि को पूर्व दिशा में यात्रा से बचना चाहिए।
मंगल और बुध को उत्तर दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
रवि और शुक्र को पश्चिम दिशा में यात्रा से बचना चाहिए।
मंगल को दक्षिण दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए।
बुध और शुक्र को ईशान कोण में यात्रा करने से बचना चाहिए।

काल-राहु का वास और यात्रा की दिशाः

शनिवार को पूर्व दिशा,
शुक्रवार को अग्नि कोण,
गुरुवार को दक्षिण दिशा,
बुधवार को नैऋत्य,
मंगल को पश्चिम दिशा,
सोमवार को वायव्य,
रविवार को उत्तर दिशा में काल-राहु का वास रहता है, अतः इन दिनों में यात्रा से बचना चाहिए।
नक्षत्र शूलः यात्रा में किसी भी दिशा में नक्षत्र शूल होने से बचें।
पूर्व दिशा में ज्येष्ठा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र शूल होते हैं।
दक्षिण दिशा में विशाखा, श्रवण, पूर्वा भाद्रपद, और उत्तर भाद्रपद नक्षत्र शूल होते हैं।
पश्चिम दिशा में रोहिणी, पुष्य और मूल नक्षत्र शूल होते हैं।
उत्तर दिशा में पूर्वा फाल्गुनी, हस्त और विशाखा नक्षत्र शूल होते हैं।
योगिनी वास और यात्राः यात्रा में दिशाओं के अनुसार योगिनी का वास भी महत्वपूर्ण होता है।
पूर्व दिशा में 1, 9 तिथियाँ,
अग्नि कोण में 3, 11 तिथियाँ,
दक्षिण दिशा में 5, 13 तिथियाँ,
नैऋत्य दिशा में 4, 12 तिथियाँ,
पश्चिम दिशा में 6, 14 तिथियाँ,
वायव्य दिशा में 7, 15 तिथियाँ,
उत्तर दिशा में 2, 10 तिथियाँ,
ईशान दिशा में 8, 30 तिथियाँ योगिनी का वास रहता है।
चन्द्रमा की दिशाः चन्द्रमा की दिशा यात्रा की दिशा पर प्रभाव डालती है। यात्रा में चन्द्रमा का सम्मुख होना शुभ होता है, जबकि दाहिना ओर या पीछे होना अशुभ होता है।
पूर्व दिशाः मेष, सिंह और धनु राशि का चन्द्रमा।
दक्षिण दिशाः वृष, कन्या और मकर राशि का चन्द्रमा।
पश्चिम दिशाः मिथुन, तुला और कुंभ राशि का चन्द्रमा।
उत्तर दिशाः कर्क, वृश्चिक और मीन राशि का चन्द्रमा।

यह दिशा, नक्षत्र और योगिनी के अनुसार यात्रा के समय का चुनाव करना महत्वपूर्ण है, ताकि यात्रा शुभ और सफल हो।

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