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पापकुंशा एकादशी व्रत, जानिए मुहूर्त और दान-पुण्य का महत्व

भगवान विष्णु को अनिरुद्ध क्यों कहा जाता है?

भगवान विष्णु को अनिरुद्ध क्यों कहा जाता है?

हिन्दू धर्म में पापकुंशा एकादशी का अत्यधिक महत्व होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन पड़ने के कारण इसे पापकुंशा एकादशी  कहा जाता है। यह एकादशी तिथि का व्रत दशहरा या विजयादशमी के पर्व के अगले दिन आता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान श्री विष्णु जी के विष्णु पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस एकादशी तिथि का व्रत करने से भगवान विष्णु जी के सभी भक्तों को तप के समान फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

भगवान श्री कृष्ण जी कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति गलती से कोई पाप कर लेता है तो उस व्यक्ति को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। मान्यता के अनुसार यह एकादशी जातक को उसके पापों से मुक्त करके स्वर्ग की प्राप्ति करने में सहायता प्रदान करता है। पापकुंशा एकादशी का व्रत रखने से जातक का मन एकदम शुद्ध रहता है।

पापकुंशा एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक माना जाता है। इस व्रत के बिना कोई भी व्यक्ति अपने पापों से मुक्त नही हो सकता है। उसके बुरे कर्म हमेशा उसका पीछा करते रहते हैं। इस पवित्र व्रत का पुण्य 100 सूर्य यज्ञ या 1000 अश्वमेघ यज्ञ करने के बराबर होता है। पाप रूपी हाथी को व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से बेधने के कारण ही इसका नाम पापकुंशा एकादशी हुआ। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण तथा भजन-कीर्तन करने का विधान होता है। बहुत से लोगों के कहेनुसार इस व्रत को करने वाले मनुष्यों को कठिन तपस्या करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

पापकुंशा एकादशी में दान-पुण्य का महत्व

पापकुंशा एकादशी में दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। यदि कोई जातक पापकुंशा एकादशी तिथि के दिन व्रत नही रह पाता है तो इस दिन ब्राह्मणों को कपड़े, भोजन तथा अन्य आवश्यक चीजें दान करना चाहिए। इस एकादशी वाले दिन भगवान श्री विष्णु जी के पदमनाम स्वरूप की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के पापों का प्रायश्चित जल्द ही हो जाता है साथ ही माता-पिता और मित्र तीनों पीढ़ियों को मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा जो भी भक्त इस व्रत को सच्चे मन से रखता है उसका मन शुद्ध और पवित्र हो जाता है।

पापकुंशा एकादशी पूजा विधि

☸ व्रत के एक दिन पहले सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। उसके अगले दिन एकादशी तिथि समाप्त होने तक व्रत रखें। दशमी तिथि के दिन गेहूँ, उड़द, मूँग, चना, जौ, चावल तथा मसूर का सेवन न करें।

☸ एकादशी तिथि के दिन सभी भक्त उपवास रहकर मौन व्रत धारण करें। इस दिन प्रातः काल उठकर साफ-सुथरे होकर कलश की स्थापना करके विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें।

☸ एकादशी तिथि को श्री हरि विष्णु जी को बेल पत्र, धूप, दीप, अगरबत्ती, फूल, फल और अन्य पूजा की सामग्री अर्पित करते हैं। विधिपूर्वक पूजा समाप्त हो जाने के बाद अंत में आरती करके प्रसाद अर्पित करते हैं। अगले दिन व्रत का पारण कर अन्न ग्रहण कर सकते हैं।

पापकुंशा एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें

☸ इस व्रत के दौरान आप अपने मन में दूसरो के लिए कोई बुरा विचार न लायें।

☸ जितना हो सके मौन व्रत रहें और किसी के साथ बेवजह बहस न करें।

☸ चारों प्रहर में पूजा करें और पीली वस्तुओं का दान करें।

☸ व्रत के दौरान किसी तरह के गलत कार्यों को करने से बचें।

☸ बड़े-बुजुर्गों की सेवा करें हर तरह के पापों से मुक्ति मिलेगी।

☸ व्रत के दिन किसी स्त्री का अपमान न करें।

☸ पापकुंशा एकादशी के दिन गंगा स्नान अवश्य करें।

☸ भगवान विष्णु जी की पूजा के दौरान तिल का अवश्य दान करें।

☸ व्रत के दौरान सांसारिक बातों से दूर रहें, अपने मन को शांत रखें तथा हो सके तो आज के दिन झूठ न बोलें।

☸ इस व्रत के दौरान रात में सोये नही बल्कि अपना मन भगवान की भक्ति में अवश्य लगायें, रात्रि जागरण और वैदिक मंत्रों का जाप अवश्य करें।

पापकुंशा एकादशी शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारम्भः- 24 अक्टूबर 2023 दोपहर 03ः14 मिनट से।
एकादशी तिथि समाप्तः- 25 अक्टूबर 2023 दोपहर 12ः32 मिनट तक।

पारण का समय

26 अक्टूबर को सुबह 06ः28 मिनट से सुबह 08ः43 मिनट तक।
पापकुंशा एकादशी 25 अक्टूबर 2023 बुधवार के दिन मनाया जायेगा।

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