संतान के जन्म मे पाया का क्या महत्व है ?

एक पारिवारिक जीवन मे संतान का जन्म सबसे अधिक खुशियों वाला पक्ष होता है। संतान का जन्म होते ही बड़े बुजुर्ग यह जानने को उत्सुक रहते है कि किस पाया अर्थात किस पैर के साथ संतान घर मे आया है तथा कही यह बालक स्वयं एवं हमारे लिए किसी प्रकार से कष्टदायक तो नही है। कुण्डली के बारह भावो को चार पायों मे बाँटा गया है और इन्हें चार धातुओं सोना, चाँदी, ताँबा और लोहे का नाम दिया गया है। पुरानी पीढ़ियो की कहानियों के अनुसार माना जाता था कि यदि जन्मपत्रिका मे अष्टम भाव में चन्द्रमा हो या चन्द्रमा की स्थिति कमजोर हो तो नवजात शिशु के बचने की संभावना बहुत कम होती है तथा कई बार प्रसव के दौरान ही माँ एवं बच्चे का जीवन समाप्त हो जाता था। ऐसे परिस्थिति मे लोग पाया का विचार करते थे पाया का निर्धारण चन्द्रमा की भाव स्थिति और नक्षत्र इत्यादि विधियों से की जाती है।

पाया कैसे देखते है ?

पाया को पैर के नाम से भी जाना जाता है। पाया चार प्रकार का होता है। पहला पाया स्वर्ण (सोना), दूसरा पाया रजत (चाँदी), तीसरा पाया ताम्बा (ताँबा) और चतुर्थ पाया लोहा होता है। यह सभी पाये कुण्डली मे चन्द्रमा की स्थिति पर निर्भर करते है। बच्चे के जन्म के समय कुण्डली मे चन्द्रमा जिस भाव मे उपस्थित होता है उसके अनुसार पाया को निर्धारित किया जाता है।

प्रत्येक पाया का क्या महत्व है ?

सोने का पायाः जब कुण्डली मे चन्द्रमा पहले, छठवे या ग्यारहवे भाव मे उपस्थित हो तो सोने के पाये मे जन्म होता है। सोने के पाये मे जन्मे जातक को ज्यादा शुभ फलो की प्राप्ति नही होती है। इनको अपने जीवन मे सुख सुविधाए तो प्राप्त होती है परन्तु कुछ मुश्किलों के बाद। इस पाये मे जन्मे बच्चे शीघ्र ही रोगों से प्रभावित हो जाते है तथा परिवार की सुख-शान्ति मे कुछ रुकावटे भी आती है। साथ ही यह पिता के लिए भी अच्छे नही होते है क्योकि इससे पिता को अनेक शत्रुओ का सामना करना पड़ता है तथा धन हानि की भी संभावना बनती है। यदि सोने का पाया से अधिक परेशानी उत्पन्न हो रही है तो सोने का दान करने से राहत मिलती है।

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नक्षत्र के अनुसार:-रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी या मृगशिरा नक्षत्र मे जिन बच्चो का जन्म होता है वे सोने के पाये के होते है।
श्रेष्ठता के क्रम मे सोेने के पाये को तीसरे को क्रम पर रखा जाता है।

चाँदी (रजत) का पायाः
जब कुण्डली मे चन्द्रमा दूसरे पांचवे या नौवे भाव मे उपस्थित हो तो बच्चे का जन्म चाँदी के पाये मे होता है। इस पाये मे जन्मे बच्चे बहुत भाग्यशाली माने जाते है। इनके जन्म के बाद परिवार मे खुशियों का आगमन होने लगता है तथा रुके हुए कार्यो की पूर्ति भी होती है। ये बच्चे सभी सुख-सुविधाओ का आनन्द लेते है। इनके जन्म से माता-पिता के भाग्य मे भी उन्नति होती है। परिवार का मान-सम्मान बढ़ता है।
नक्षत्र के अनुसार:- आर्दा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा या स्वाति नक्षत्र मे जन्मे बच्चे चाँदी के पाये के होते है।

श्रेष्ठता के क्रम मे चाँदी के पाये को  सर्वश्रेष्ठ क्रम पर रखा जाता है।
तांबे का पायाः
जब कुण्डली मे चन्द्रमा तीसरे, सातवें या दसवे भाव मे उपस्थित हो तो बच्चे का जन्म तांबे के पाये मे होता है। यदि किसी परिवार मे बच्चे का जन्म तांबे के पाये मे हुआ है तो शुभ फल मिलते है। इनकी पारिवारिक स्थिति पहले से बेहतर होती है। पिता के कारोबार मे उन्नति के योग बनते है और पारिवारिक जीवन धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगता है।
नक्षत्र के अनुसारः विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा या शताभिषा नक्षत्र मे जन्मे बच्चे ताम्बे के पाये के होते है।
श्रेष्ठता के क्रम मे तांबे के पाये को दूसरे क्रम मे रखा जाता है।
लोहे का पायाः
जब कुण्डली मे चन्द्रमा चतुर्थ, आठवे या बारहवें भाव मे उपस्थित हो तो लोहे के पाये मे जन्म होता है। यह पाया अशुभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस पाये मे जन्मे बच्चे को जीवन भर संघर्ष करना पड़ता है। परिवार की स्थिति अच्छी नही होती है। धन हानि का सामना करना पड़ता है। जीवन मे अनेक परेशानियां बनी रहती है तथा पिता को कष्ट मिलने के साथ-साथ परिवार मे कोई अप्रिय घटना की भी संभावना होती है।
नक्षत्र के अनुसारः पूर्वाभाद्रपद या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र मे जन्मे बच्चे लोहे के पाये के होते है।
यह पाया अशुभ होता है।
विशेषः यदि लग्नबली हो चन्द्रमा को पक्ष बल मिला हो अथवा किसी अशुभ बेला मे जन्म न हो एवं बड़ा बालरिष्ट न दिखे तो पाये का दोष शान्त रहता है।

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नोट:यहाँ पाया की सामान्य जानकारी दी जा रही है।

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