Kamada ekadashi 2024, कामदा एकादशी का करें व्रत होंगी अधूरी मनोकामनाएं पूरी

हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार देखा जायें तो माह की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी तिथि कहा जाता है। एकादशी तिथि एक माह में दो बार आती है। एक एकादशी पूर्णिमा तिथि के बाद और एक एकादशी अमावस्या के बाद आती है। इनमे से पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद पड़ने वाली एकादशी तिथि को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहा जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह पर्व हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार मार्च या अप्रैल महीने में मनाया जाता है। इस एकादशी तिथि के दिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने से कहा जाता है कि भगवान विष्णु हमारी सारी अधूरी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं जिसके कारण इस पर्व को फलदा यानि फल देने वाला एकादशी भी कहा जाता है।

Kamada Ekadashi by Astrologer K.M. Sinha (कामदा एकादशी)-

कामदा एकादशी के व्रत का महत्व

माह में पड़ने वाली कई एकादशी तिथियों में से कामदा एकादशी का एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। इस दिन किये गये व्रत और पूजा-पाठ से व्यक्ति के जीवन के सभी कार्य मंगलमय होकर पूर्ण हो जाते हैं। इस दिन सभी महिलाएं उपवास रखकर अखंड सौभाग्यवती होती हैं। इस दिन भगवान विष्णु जी अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करके उनके घर में सुख-शांति बनाये रखते हैं। विधिपूर्वक किये गये कामदा एकादशी के पूजन से जातक के जीवन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं साथ ही राक्षस जैसी योनियों से भी मुक्ति मिल जाती है।

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कामदा एकादशी व्रत कथा

कामदा एकादशी की कथा के अनुसार एक बार महाराजा युधिष्ठिर नें भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का नाम क्या है ? तब उन्होंने जवाब देते हुए यह कहा कि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का नाम कामदा एकादशी है। यह एकादशी तिथि सभी तरह के बुरे पापों को नष्ट करके व्यक्ति का मोक्ष की प्राप्ति कराती है।

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एक बार की बात है प्राचीन समय में नागलोक में एक भोगीपुर नामक सुन्दर नगर था जहाँ सोने के महल बने हुए थे। उसी नगर में बहुत बड़े-बड़े और भयानक नागदेवता निवास करते थे। उन्हीं में से पुंडरीक नामक एक नाग वहाँ राज किया करता था। वहाँ अप्सराओं के साथ-साथ गंधर्व और किन्नर भी निवास किया करते थे। वहाँ की एक श्रेष्ठ अप्सरा ललिता अपने पति ललित के साथ उसी नगर में अपना जीवन व्यतीत करती थी। उनके पास धन, ऐश्वर्य और वैभव की कोई कमी नही थी।

एक दिन राजा पुंडरीक की सभा में नृत्य और गाने का आयोजन प्रस्तुत हुआ परन्तु उसके साथ उसकी पत्नी नही थी। नृत्य करते समय उसे अपनी पत्नी की याद आ गई जिसके कारण उसके पैरों की गति धीमी हो गई और उसके जीभ लड़खड़ाने लगे। उसी सभा में कर्कोटक नाम का एक नाग देवता भी मौजूद था और उन्होंने ललित को गाने का आदेश दिया और वे पुंडरीक राजा के साथ सभा का आनन्द लेने लगे।

ललित गाने में मग्न था परन्तु पत्नी की याद आते ही वह गाना भूल गया। ऐसे में नाग देवता ने ललित की गलतियों को पकड़ लिया जिसके बाद पुंडरीक राजा ने उसे राक्षस बनने का श्राप दे दिया। नाग देवता के श्राप देते ही वह राक्षस बन गया। राक्षस बनने के बाद उसका रूप बहुत डरावना हो गया। जब पत्नी ललिता को इस बात का पता चला तो वह बहुत दुखी होकर मन में यह सोचने लगी की उसके पति कितना ज्यादा कष्ट भोग रहे हैं। वह सोचने लगी मैं क्या करूँ?
रोते-रोते वह अपने पति के साथ ही घने जंगलों में घूमने लगी। उसी वन में एक आश्रम था जहाँ एक मुनि शांत बैठे हुए थे। ललिता शीघ्र उनके पास पहुँची और उन्हें प्रणाम किया। उस मुनि ने कहा कि तुम कौन हो और कहाँ से यहाँ आयी हो मुझे सच-सच बताओ।

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ललिता ने कहा मैं गन्धर्व की पुत्री हूँ मेरा नाम ललिता हैं मेरे पति अपने पाप दोष के कारण राक्षस हो गये हैं। उनकी यह हालत मुझसे देखी नही जाती है। कृपया करके मुझे कोई उपाय बताइए ताकि मेरे पति राक्षस के रूप से छुटकारा पा सके।

तब ऋषि मुनि बोले कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की कामदा नामक एक एकादशी तिथि हैं यह सभी तरह के पापों को हरने के लिए अति उत्तम हैं। तुम इस व्रत का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का पुण्य फल अपने स्वामी को दे दो। तुम्हारे पति के सारे पाप नष्ट हो जायेंगे। मुनि की बात मानकर ललिता ने कामदा एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक किया जिसके फलस्वरूप लाभ प्राप्त कर ललित पहले की तरह सुन्दर और सभी पापों से मुक्त हो गया।

कामदा एकादशी व्रत की पूजा विधि

☸ कामदा एकादशी तिथि के दिन सबसे पहले व्रत रखने का संकल्प लें।

☸ प्रातः उठकर सूर्यदेव को प्रणाम करने के बाद स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

☸ सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद गंगाजल छिड़क कर पूजा स्थल को पवित्र और साफ कर लें।

☸ पूजा स्थान पर एक लकड़ी की चौकी रखकर उस पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर श्री हरि की मूर्ति स्थापित करें।

☸ उसके बाद हाथ में जल लेकर कामदा एकादशी के व्रत का संकल्प लें।

☸ श्री विष्णु जी को हल्दी, अक्षत, चंदन तथा फल, फूल अर्पित करते हुए श्रद्धापूर्वक प्रणाम करें।

☸ विष्णु भगवान जी को रोली से टीका करके पंचामृत अर्पित करें।

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☸ इस दिन तुलसी का पत्ता विष्णु जी को अवश्य चढ़ाये उसके बाद आरती करके भोग लगायें।

☸ कामदा एकादशी के दिन शाम के वक्त पूजा करते समय माँ तुलसी जी के आगे घी का दीपक भी अवश्य जलायें इससे माँ तुलसी अत्यधिक प्रसन्न होती हैं साथ ही भगवान विष्णु जी भी प्रसन्न होते हैं।

☸ अन्त में ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दान-दक्षिणा अवश्य देना चाहिए।

कामदा एकादशी के दिन ध्यान रखने योग्य बातें

☸ कामदा एकादशी के दिन सूर्यास्त के बाद बिल्कुल भोजन न करें।

☸ भोग वाली वस्तुओं में तीखी वस्तुओं का भोग न लगाएं केवल मीठी वस्तुओं का ही भोग लगायें।

☸ इस एकादशी के दिन चावल का सेवन बिल्कुल न करें अन्यथा अपको अगला जन्म रेंगने वाले जीव के रूप में मिलेगा।

☸ इस एकादशी के दिन प्याज, लहसुन का प्रयोग करने से बचें केवल सात्विक आहार का सेवन करें।

☸ इस दिन किसी से भी ऊँची आवाज में बात न करें और किसी को भी अपशब्द कहने से बचें।

कामदा एकादशी शुभ मुहूर्त

कामदा एकादशी का पर्व 19 अप्रैल 2024 को शुक्रवार के दिन मनाया जायेगा।
एकादशी तिथि प्रारम्भः- 18 अप्रैल 2024 को शाम 05ः31 मिनट से,
एकादशी तिथि समाप्तः- 19 अप्रैल 2024 को रात्रि 08ः04 मिनट तक।